आलस्य



एक बार एक व्यक्ति अपनी सारी बुरी आदतें बेच रहा था।  उसमें झूठ बोलना, बेईमानी, कामचोरी, कपट, धुर्थता, चाटुकरिता आदि थे। अपेक्षा के अनुसार उसे सारी बुराइयों की काफी अच्छी कीमत मिल रही थीं। इसके साथ एक और बुराई की उसे सबसे ज्यादा कीमत मिल रही थी परंतु लाख समझाने बाद भी वह इस बुराई को बेचने पर राजी नहीं हुआ। जब उस से उस बुराई के न बेचने का कारण पुछा गया तो उसने बताया कि  इस बुराई के रहते बाकी सारी बुराइयों को फिर से हासिल करनें मे उसे कोई विशेष कठिनाई या देर नहीं लगेगी। मगर  किसी भी तरह उस बुराई के न रहते बाकी बुराइयों को नहीं लाया  जा सकता है। अतः उस बुरी आदत को कितनी भी कीमत में बेचना उचित नहीं है।

जानते है वो कौन सी आदत थी। आलस्य।। आलस्य सारी बुराइयों की जड़ हैं । अगर जीवन मे सफल होना है तो आलस्य को त्यागिए और हर मंजिल हासिल करें। आलसी वयक्ति  बड़ी आसानी से दूसरी बुरी आदतों मे लिप्त हो जाता हैं।

विजय का एक ही मूल मंत्र हैं आलस्य का त्याग।

यह लेख अखण्ड ज्योति में प्राकाशित लधु कथा से प्रेरित है।
 जितेंद्र पटेल।

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