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Showing posts from May, 2021

बुद्ध और विपश्यना

  भगवान बुद्ध का व्यवहारिक ज्ञान आज के युग की सबसे बड़ी पूंजी है। बौद्ध धर्म आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है और इसकी शुरुआत श्रमण परम्परा से  हुई थी। यह भगवान बुद्ध द्वारा दिया गया ज्ञान धर्म और दर्शन है। बौद्ध धर्म व्यवहारिक ज्ञान पर जोर देता है और वर्तमान परिपेक्ष में बड़ी सहजता से समाहित हो जाता हैं। वैसे तो भगवान बुद्ध ने विश्व को कई ज्ञानप्रद शिक्षाएं दी हैं । परंतु मौन और विपश्यना उन सबसे महत्वपूर्ण हैं। बुद्ध के अनुसार शांति में आत्मा निवास करती है। मौन बहुत ही शक्तिशाली होता है यह हमें सुनने और सुनाने के सक्षम बनाता है। प्रतिदिन कुछ समय मौन रहकर और प्रयासों से मौन को बड़ा कर हम अपने जीवन को सम्मानित कर सकते है। मौन आपको कई मुश्किलों से बचा सकता है।  बिना  अर्थो के शब्दों से मौन बहुत बेहतर है। मौन हमें आत्ममंथन का अवसर देता है। भगवान बुद्ध के द्वारा बताई गई विपश्यना ध्यान पद्धति में भी मौन रहकर ही ध्यान की शुरुआत करनी पड़ती है। विपश्यना ध्यान की एक व्यवहारिक पद्धति है जिससे भगवान बुद्ध को ज्ञानोद्दीप्ति प्राप्त हुई थी। विपश्यना ध्यान में मन में आ रहे विचारों को रुकने के बाजाए

नर‌ हो, न निराश करो मन‌ को

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  नर ‌ हो, न निराश करो मन ‌ को हिंदी के महान कवि   मैथिलीशरण गुप्त की यह कविता निराशा के महौल में आशान्वित करती है। महान लेखक ओ हेनरी की कहानी द लास्ट लिफ भी   आशा और ‌ उम्मीद के सहारे सकारात्मक बने रहने की प्रेरणा देती है कहानी की नयिका किस प्रकार एक   पेड़ की आखिरी पत्ती के सहारे जी उठती है और एक ‌ बूढा़ कलाकार किस तरह खिड़की पर पत्ती बना कर लड़की को जीवन दान देता है। इन ‌ दोनों  प्रसंगों ‌ से यह   समझा जा  सकता है कि निराशा के समय आशा और सकारात्मकता ही संभल है।   आज जब सारा विश्व और विशेष रूप से भारत कोरोना महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है और हर तरफ निराशाजनक वातावरण   बना। हुआ है हम में से कई लोगों ने अपनों को खोया ,   कई लोगों की नौकरी चली गई कुछ लोग आर्थिक रुप से कमजोर हो गए साथ ही कोरोना ने लोगों को मानसिक दबाव का शिकार बनाया। जिनका नुकसान हुआ है उसकी पूर्ति करना संभव नहीं है और हम सभी की   सहानुभूति   उनके साथ है।

हुनर और ईमानदारी

  एक   बार   एक   नगर   में   टेक्स   इंस्पेक्टर   शहर   के   सेठ   के   यहाँ   तलाशी   लेने   पहुँचता   है   ।   उसे   देख   सेठ   घबरा कर   फौरन   उसे   रिश्वत   देने लगते है।   पर‌   वह   इंस्पेक्टर   सेठजी   की   सारी   दौलत   और   बहिखातों   की   तफ़तीश करता   है।   आखिर   में   जाते   हुए   जब   सेठजी   उसे   समझौता   करने   को   कहते   है   तब   वह   कहता   है‌   कि   वह   एक   बहरुपिया   है   और उसे   उसके   हुनर   का   इनाम   चाहिए।   उसे   बहरुपिया   जानकर   सेठजी   उस   पर   बहुत   गुस्सा   होते   हैं।   पर   उसके   हुनर   का   सम्मान   कर   उसे   इनाम   भी   देतें   हैं। कुछ   सालो   बाद   उसी   शहर   में   एक   बहुत   ही   पहुँचे   हुए   साधु   पधारते   है।   उनका   यश‌   जान   कर   सेठजी   भी   उनकी   शरण   में   जाते   ‌ हैं ।   साधु   उन्हें   अपना   सारा   धन‌   लाने   को   कहता   है‌।   सेठजी   साधु   के   चरणों   में   अपनी   सारी   धन‌   दौलत   और   जवाहरात   रख   देते हैं । अगले दिन जब साधु शहर से   जाने   ‌लगते   ‌हैं   तब   वह   सेठजी   से   कहता   उस