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परिवर्तनमेव स्थिरमस्थि

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  गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि परिवर्तनमेव स्थिरमस्थि अर्थात परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर प्रकिया है वह बताते हैं कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। और परिवर्तन की इस प्रक्रिया के साथ ही यह साल भी परिवर्तित हो गया, गुजरता साल अपने साथ बहुत से बदलाव, नई सीख, शिक्षा और सुखद अनुभव दे कर गया और आने वाले साल के लिए हमें आशान्वित, और प्रफुल्लित कर कर गया है।  नया साल के साथ ही हम सब कोई न कोई संकल्प या रेजोलंशन (Resolution) लेते हैं और पूरी इच्छा शक्ति से उसे पूरा करने का प्रयास करते है। परंतु हम में से बहुत कम लोग ही उसे पूरा कर पाते हैं और उसे अपनी आदत का हिस्सा बना पाते हैं। और जब हम ऐसा नहीं कर पाते तो हम हमारे आसपास की परिस्थितियों को दोषी करार देते है। अगर हम हमारे शास्त्रों से समझे तो वह तत्परिवर्तन भव: की भावना पर जोर देते है यानि कि बदलाव हमें से ही शुरू होता है या जो बदलाव चाहते हो वह खुद में लाओ। यह बात हमारे नव वर्ष के संकल्पों पर बहुत सटीक बैठती है क्योंकि नववर्ष से जोड़े बहुत से संकल्प हमारी जीवनशैली के परिवर्तन की बात करते हैं।  हालाँकि यह डराने वाला और कठिन लग सकता है क्योंकि