सफरनामा

 

यह लेख मेरी माँ द्वारा पिछले वर्ष की गई उत्तर पूर्वी / पूर्वोत्तर राज्यों (सेवन सिस्टर) में की गई यात्रा पर आधारित है इस लेख में भाव मेरे है पर हर शब्द मेरी माँ का है

जैसा कहा गया है

पग बिनु चले सुनु बिनु काना

कर बिनु करम करे विधि नाना

हे प्रभु जैसा कि सर्व विदित है तेरी महिमा अपरम्पार है हे प्रभु मेरी इस यात्रा के प्रबंधन के लिए तेरा कोटिशः धन्यवाद  दिनांक १३..२०२४ को भोपाल से यात्रा शुरू हुई प्रयागराज होती हुई पटना स्टेशन पहुंची पटना में माँ गंगा का विशाल पुल और तेज बहती गंगा देखकर मन गदगद हो गया ट्रैन अपनी मंद गति से चल रही थी बिहार और उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी थी परन्तु रेल  से दूर दूर तक दिखते हरे भरे पेड़ और खेतो की हरियाली आखों को सुकून दे रही थी गंगा का यह कछार भारत की कितनी आबादी का भरण पोषण करता है ईश्वर की यह नेमत अतुलनीय है  हमे नदियों और पेड़ों को अवश्य बचाना चाहिए क्योंकि जल है थो कल है

१५..२०२४ शनिवार सुबह बजे असम का परपेटा आया अहा असम कितना सूंदर हरा भरा और पानी से भरा हुआ है ऊपर से बारिश भी हो रही थी वाह भगवान् तेरी प्रकृति भी न्यारी है इसे देख कर हम मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की गर्मी भी भूल गए तन और मन दोनों ही प्रफुल्लित हो गए करीब :०० बजे गोहाटी उतरना है फिर होटल में तैयार हो कर कामाख्या देवी के मंदिर जाना है कामाख्या देवी की कामना लगभग १२ वर्षों के बाद पूर्ण होने जा रही थी कामाख्या मंदिर में देवी के दर्शन बिना परेशानी के सुलभ हुए भगवान ने मेरी इच्छा का ध्यान रखा इसके लिए ईश्वर को कोटिशः धन्यवाद देवी के दर्शन करके मन को शांति मिली मंदिर से लौटते समय विशाल ब्रम्हापुत्र के दर्शन हुए  ब्रम्हापुत्र के विशाल आकर को देखकर ये महसूस हुआ कि सचमुच ब्रम्हा भगवान ने इसकी रचना कर चीन के तिब्बत होते हुए भारत भेजा पूर्वोत्तर की शान ब्रम्हापुत्र लाखों की प्यास बुझा पूर्ण पूर्वोत्तर को हरा भरा बना रही है शाम को करीब ५ बजे शुक्रेश्वर महादेव मंदिर की परम शांति में ईश्वर को नमन किया

रविवार १६.०६.२०२५ को सुबह शिलांग के लिए निकले शिलांग की प्राकृतिक सुंदरता के साथ राजधानी भी है इसलिए वह बड़े बड़े भवन जैसे राजभवन हाई कोर्ट मानव अधिकार भवन भी देखने को मिले जिस रोड से हम सफर कर रहे थे वहां बगल में धने वनों के साथ गहरी खूबसूरत घाटियां बादलों के साथ अठखेलियां कर रही थी शिलांग के अतुलनीय सौंदर्य को निहारते हुए हम चेरापूंजी को रावना हुए

चेरापूंजी के अंदर ही भारत का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान मौसिमराम है जिसे हमने बाहार से ही देखा चेरापूंजी में बारिश ने हमें कई बार भिगो दिया इसके बाद हम एलीफैंटा जलप्रपात देखने गए और उसका भीषड़ प्रवाह एवं गर्जना रोमांचित करने वाली थी  इसे नीचे तक निहारने के लिए हम  सभी नीचे गए और इसके आकर्षण ने हमे थकान का अहसास नहीं होने दिया ऊपर आकर मेघालय की पारम्परिक वेषभूषा में  कुछ अच्छी तस्वीरें खिचवाई और आगे के सफर तय किया चेरापूंजी के कुछ दूर इको पार्क देखा जो की बहुत ही सुन्दर था इसे के नजदीक मसाइमाई की गुफा देखी जिसके अंदर जाकर मेरे साथियों ने पानी से भरी उस गुफा का पूरा आनंद लिया अंधेरा और सकरे रस्ते के डर से मैं गुफा के अंदर नहीं गई सारे रास्ते हमे बहुत से जल प्रपात मिलते रहे  शाम को वहां से लौटते समय सेवन सिस्टर फॉल की चार धाराओं को स्पष्ट देखा  बाकी तीन धाराएं अंधेरे की वजह से नहीं देख पाए

सोमवार १७.०६.२४ के चेरापूंजी से बांग्लादेश सीमा के लिए रवाना हुए वहां हमने दावकी नदी और बांग्लादेश बॉर्डर देखा जिसका सीमांकन गोल गोल पत्थरों से किया गया था हमे वहां सीमा से लगे कुछ गांव भी दिखाई दिए दावकी नदी बहुत ही सूंदर और तेज प्रवाह वाली नदी है जो भारत से बहकर बांग्लादेश जा रही थी इस नदी के किनारे बहुत सी नाव रखी थी बारिश के कारण मछली पकड़ने का काम बंद था  इस हिमालयन जंगल में बहुत से तेजपत्ता और सुपारी के पेड़ देखे टूटी सुपारी के १५ दिन पानी में भिगो कर रखा जाता है और फिर ऊपर के रेशे का खोल निकल कर खाने के उपयोग में लिया जाता है हिमालय पर्वत हमे बहुत सी वनोपज देता है

शाम को ट्रैन से गंगटोक के लिए निकले और बहुत बारिश की वजह से गंगटोक के कुछ गावों में बाढ़ आई थी और वहां की तीस्ता नदी में भी काफी पानी था इस वजह से तीन घंटे का रास्ता छह घंटे में पूरा हुआ शाम को महात्मा गाँधी मार्केट मॉलरोड में कुछ शॉपिंग की और रात को होटल में एक कपल की मैरिज एनिवर्सरी का केक का आनंद लिया और नवीन पीढ़ी  द्वारा मिले सम्मान और चरण स्पर्श से मन आनंदित हुआ

बुधवार १९.०६.२४ सुबह ७ बजे चीन बॉर्डर नाथुला पास देखने के लिए निकले ८ बजे परमिट लेकर दुर्गम रास्ते से नाथुला पास के लिए निकले ६० किलोमीटर के इस रास्ते पर बहुत से सुन्दर दृश्य दिखाई दिए वहां  करीब २ किलोमीटर तक फैली चंगू झील देखने को मिली ठण्ड बढ़ जाने के कारण हमने स्वेटर टोपा और मोज़े पहन लिए नाथुला पास पहुंचने पर मिलट्री जवानो द्वारा बनाये गए नाश्ते का आनंद लिया फिर करीब  सौ सीढ़यों को चढ़कर भारत और चीन सीमा देखी  वहां चीन और  भारत द्वारा बनाये गए भवनों को देखा और तस्वीरें खींची बॉर्डर को कांटेदार तारो से सुरक्षित किया गया था सीमा पर बेहद ही ख़राब मौसम में भी जवानो का सीमा पर डटे रहना और उनकी जनसेवा और देशभक्ति काफी प्रशंसनीय है

नाथुला से नीचे उतर कर सरदार हरभजन सिंह की समाधि पर गए उनका जन्म १९४६ में पाकिस्तान में हुआ था और १९६६ में भारतीय सेना में नाथुला के करीब घोड़े से गिरने पर उनकी मृत्यु हो गई परन्तु आज भी उनकी दिव्यात्मा और दिव्यशक्ति यहाँ बॉडर की रक्षा करती है यहाँ से निकलने पर  चंगू झील  के किनारे याक का काफिला मिला और वहां सभी ने ख़ुशी से याक पर बैठकर तस्वीरें खिचवाई वही बगल में शंकर मंदिर में दर्शन कर प्रसाद ग्रहण किया  ५ बजे गंगटोक पहुंचने पर हल्की बारिश में हनुमान टोक गणेश टोक बुद्ध मोनेस्ट्री और मन्दाकिनी फॉल देखे

गुरूवार २०.०६.२४ सुबह सिक्किम में स्थित नामची तीर्थ पहुंचे यह तीर्थ चारो धाम को समर्पित तीर्थ है रास्ते में हम थेंग सुरंग टनल से गुजरे जो की ५७८ मीटर लंबी सुरंग सिक्किम राज्य की सबसे लंबी सुरंग है। इस सुरंग को देख कर आधुनिक इंजीनियरिंग संरचनाओं पर गर्व होता है । जिसने बड़े और घुमावदार रास्तों की दुरी कम कर दे है परन्तु इससे विशाल हिमालय को खोखला करने के दुष्परिणाम  भूस्खलन और भूंकप के रूप में सामने आ रहे है।  रास्ते भर वेगवती पहाड़ी नदी हमारे साथ साथ चल रही थी। मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रकृति के सानिध्य ने हमारा ध्यान  ईश्वर में रमाया और इस जगह को छोड़ने का मन नहीं हो रहा था । यही पर हमने सिक्किमी ड्रेस में फोटो खिचवाई । और यहाँ से पेलिंग के लिए रावना हुए पेलिंग का रास्ता काफी घुमावदार और हरे हरे बांस और बड़े बड़े वृक्षो से भरा था।  शाम को पेलिंग पहुंचते ही होटल के चारो ओर  बड़े वृक्षो और उन पर ढकी धुंध ने मन आनंदित कर दिया ।वही सामने मैदान में कुछ बच्चे पुरे उत्साह से फुटबॉल खेल रहे थे उनका खेल बेहद ही अच्छा था।

अगले दिन सुबह प्रातः ७: ३० बजे तैयार होकर दार्जलिंग के लिए निकल पड़े करीब १० बजे एक गिलास ब्रिज को पार कर एक बड़ी बुद्ध मोनस्टरी पहुंचे। ग्लास ब्रिज बहुत ही अद्भुत था और नमीयुक्त कांच पर चलते हुए बौद्ध चक्र मैंये को हिलाकर भगवान बुद्ध को याद किया। यहाँ स्थित बड़ी मोनेस्ट्री में तीन तल थे यहाँ प्रथम तल पर बुद्ध की बड़ी विशाल मूर्ति थी। और और मंदिर के ऊपर बुद्ध की कलात्मक मुर्तिया थी ।

दूसरी मोनस्ट्री में जमीनी तल पर भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों की शांत ध्यानमग्न और विशाल मुर्तिया थी ।दूसरे और तीसरे तल पर बने म्यूजियम में सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी की शिल्पकला बर्तन घरेलु  वस्तुए और उस समय के पाली भाषा में लिखे बोध्य धर्म ग्रन्थ और पांडुलिपियां देखी। मूर्तियों के पीछे बनी बहुत ही सुन्दर और आकर्षक पेंटिंग से नज़र नहीं हटती थी। इस म्यूजियम को देखकर उस समय के लोगो के कौशल और बुद्धिमानी के प्रति सम्मान उत्पन होता है। यहाँ से एक चिड़ियाघर गए और वहां रंग बिरंगी चिड़ियों और उनके घोसलो को देखा ।

अब तेज सूरज चमक रहा था । और हम ट्रैफिक जाम में फसते हुए रेशी टनल से निकल कर दार्जलिंग की और जा रहे थे। पश्चिम बंगाल लगते ही हमे ढलान वाली पहाड़ियों पर चाय बागान दिखाई देने लगे और नीचे  रंगित नदी हमारे साथ साथ बह रही थी वही नदी के दूसरे तट पर घने वन भी साथ साथ दौड़ रहे थे। आज वाहनों की सुविधा से सभी लोग हर जगह सुगमता से पहुंच जाते है और दार्जलिंग में मिलने वाली भीड़ जिसमे हम भी शामिल थे यही साबित होता है। दार्जलिंग बहुत भीड़ वाला कम सफाई वाला और सकरे रास्ते वाला पर्वतीय स्थल लगा। सुबह १० कब्जे हम दार्जलिंग में चिड़िया घर गए वहाँ हमने शेर तेंदुआ हिरन आदि देखे वहाँ पक्षियों और जीव जन्तुओ के जीवन चक्र भी के बारे में भी जानने को मिला ।

दार्जलिंग में हमने हिमालियन पर्वतारोहण ट्रेनिंग सेंटर भी देखा ।जहाँ हिमालय की चोटियों का भूगोलिक रूप देखने को मिला। और  पहले माउंट एवेरेस्ट विजेता तेनजिंग नोर्गे की पंडित नेहरू एवं अन्य नेताओ के साथ सम्मानित होते हुए तस्वीरें भी देखी । नोर्गे ने एडमंड हिलेरी के साथ २९ फेब्रुअरी १९५३ को १०:२५ मिनट पर एवेरेस्ट पर विजय प्राप्त की थी ।

शाम को चार बजे हमने टॉय ट्रैन का आनंद लिया। इसकी स्थापना सन १८८९ में अंग्रजो ने की थी और यह तब से अपने दो घंटे के सफर में सारे यात्रियों को दार्जलिंग घूमती है। शाम को हमने खरीदारी का आनंद लिया और रात को पहाड़ी पर  स्थित होटल आकर बेहद थका देने वाले दिन का अंत हुआ ।

अगले दिन सुबह जलपाई गुड़ी रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए मार्ग में सिलीगुड़ी तक जाने वाली नैरो गेज लाइन भी देखने को मिली । जलपाई गुड़ी में समतल भूमि में लगे सूंदर चाय बागानों का आनंद लिया और काफी फोटो भी खिचवाई । पूरे सफर में साथ रहने वाला अच्छा मौसम अब गर्म हो चूका था ।

जलपाई गुड़ी  स्टेशन से घर लौटने की यात्रा शुरू हुई १३०६.२४ से २४.०६.२४ की यह बारह दिनों की यात्रा अब खत्म होने वाली है । इस सुहाने सफर के ये बारह दिन कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला । हम आठ लोग अलग अलग शहरो और अलग अलग परिवारों से आये थे । पर यात्रा के दौरान हम सब एक ही परिवार थे । हम सभी ने बिना मतभेद और सौहार्द भाव से यात्रा का पूरा आनंद लिया । इस यात्रा में हमारे टीम लीडर सुमित जी के समर्पण और व्यवस्था के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । साथ ही उस ईश्वर को पुनः  धन्यवाद जिसने इस पूरी यात्रा में अपना आशीर्वाद हम पर बनाये रखा ।

 

ईश्वर और भी कई ऐसी सुखद यात्राओं में साथ दे इसी मंगल कामना ये साथ । 

आभार

शैलजा पटैल

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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