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श्रीमद भगवत गीता के प्रबंध सूत्र

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प्रबंधन के क्षेत्र में गीता का हर अध्याय महत्वपूर्ण मार्गदर्शन करता है। अगर हम गीता को एक धार्मिक-अध्यात्मिक ग्रंथ के रूप में ना देखे तो गीता एक बेहद प्रेणादायक पुस्तक साबित होगी । वर्तमान परिपेक्ष में व्यवसाय की चुनौतियों, अनुभव की कमी तथा दिनों दिन बढ़ती अपेक्षाओं के चक्रव्यूह में युवा का आत्मविश्वास डोलने लगता है और वह कुरुक्षेत्र के अर्जुन की तरह संशय, ऊहापोह और विषाद की  स्थिति में पहुँच जाता है जहां से निकलकर आगे बढ़ने के के लिए गीता एक सरल मार्गदर्शक का कार्य करती है । गीता के आरंभ में श्लोक 2/7 में  ही अर्जुन कहते है‘‘शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नं’’ अर्थात्  मैं शिष्य की भांति आपकी शरण में हूँ । इसी तरह जिसे भी ज्ञान प्राप्ति की इक्छा हो उसे अपने गुरु एवं मार्गदर्शक की शरण में  शिष्य के भांति जाना चाहिए  अर्थात् उसे ज्ञान प्राप्ति की इच्छा और उसके उपयोग की समझ होनी चाहिए । गीता के आरिम्भिक श्लोक क्र. 2/3 में श्री कृष्ण कहते है ‘‘क्लैव्यं मा स्म गमः’’ अर्थात् कायरता और दुर्बलता का त्याग करो , वह आगे कहते है   ‘‘क्षुद्रं हृदय दौर्बल्यं व्यक्लोतिष्ठ परंतप’’ हृदय में व्य

भाषा बाधा या संचार का माध्यम

भाषा संचार का एक माध्यम होने के साथ खुद को व्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन भी है। पंरतु आजकल विधार्थी इसे अपनी सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। बहुत से विधार्थी मेरे पास कम्युनिकेशन स्किल ( संचार कोशल) में   होने वाली बाधा को लेकर आते हैं जो की विशेषकर अंग्रेजी में बोलने में होने वाली समस्या होती है। वह मुझसे अच्छा कम्युनिकेशन और बेहतर व्यक्तित्व बनाने की सलाह मांगते हैं। पर जब मैं उन्हें अपनी भाषा में परिचय देने को कहता हूं जो की प्रया हिंदी होती हैं। मैं उन्हें हिंदी में भी परिचय देने और किसी विषय पर चर्चा करने में असमर्थ पाता हूं। मेरे अनुसार बड़ी समस्या अंग्रेजी ना बोल पाना नहीं है अपितु किसी भी विषयपर उनकी जानकारी का अभाव है। ज्ञानक्षेत्र   में समायिक जानकारी का अभाव उन्हें किसी भी विषय वस्तु पर चर्चा करने में असक्षम बनाता है। विषय वस्तु पर आपकी पकड़ और ज्ञान ही आपको बोलने का साहस और आत्मविश्वास देता है। फिर भाषा बाधा या अवरोध ना होकर केवल संचार का माध्यम हो जाती है। ऐसा कहकर मैं कहीं भी अंग्रेजी की महत्वता को कम नहींं कर रहा हूं। आज के वैश्विक परिवेश में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अनिव