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भारतीय परिवेश की आत्मा- खादी

  19 सितंबर को भारत खादी दिवस मनाता हैं। खादी एक कपड़ा न होकर अपितु भारतीय परिवेश की आत्मा है। खादी का भारतीय संस्कृति एवं इतिहास से काफी गहरा नाता रहा है। एतिहासिक पहलु से देखे तो हाथ से बने सुती धागों का उल्लेख मोहनजोदड़ो सभ्यता के अवशेषों में भी मिलता हैं। भारत की खोज में आए कई व्यपारियों ने भारतीय मसालों के साथ कपास का भी व्यपार किया और खादी को पुनर्जागरण काल युरोप महाद्वीप में भी फैलाया। अपने आरामदायक और शिष्ट स्वरूप से खादी मुलगों के बीच भी काफी प्रसिद्ध रही। अंग्रेजों द्वारा भी कपास की फसल को लूट कर बंगालादेश के बुनकरों के द्वारा बुनकर ब्रिटेन भेजा गया। अंग्रेजों ने युरोप से आने वाले समानों को बढ़ावा दिया और विदेशी कपड़ों का चलन भारत आया। इसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था, किसान, व्यपारीयों एवं बुनकरों की कमर टुट गई। तब महात्मा गांधी जी ने खादी से बने वस्त्रों को ही धारण करने का निर्णय लिया और भारतीय हथकरघों से बने सुत के कपड़े को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने भारतीय बुनकरों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय को दुर किया। देखते ही देखते इस पहल ने बड़े आन्दोलन का रूप ले लिया और खादी स्वदेशी आंदोलन