राजा के गुण
आज के लेख में भारतीय संस्कृति के एक सबसे प्रमुख ग्रन्थ महाभारत के एक प्रसंग से करते हैं। यु तो महाभारत की कथा कई प्रेरणादायक उद्धरणों से भरी पड़ी हैं।खांडवप्रस्थ के वन जलाकर पड़ावों ने इंद्रप्रस्थ नामक नए राज्य की स्थापना की और महाराज युधिष्ठिर राजा बने आज के लेख में हम महाराज युधिष्ठिर को महर्षि नारद द्वारा बताये गए राजा के गुणों की चर्चा करते है ।
महर्षि नारद ने महाराज युधिष्ठिर राजा के ग्यारह गुणों के बारे में बताया नारद मुनि के अनुसार राजा का प्रथम गुण सहभागी नेतृत्व है अर्थात एक राजा अपने राज्य के निर्णय स्वयं न लेकर सभी की सलाह और सहमति से लेता है कहने का अर्थ है कि वह तानाशाह नहीं है और सभी के हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करता है।
महर्षि नारद ने राजा का दुसरा कर्त्तव्य अपने सैनिकों को समय पर वेतन देना है किसी भी देश की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण दायित्व है और इसलिए राजा को अपने सैनिकों को वतन समय पर देना चाहिए।
राजा का तीसरा कर्त्तव्य है कि वह अपने लिए जोखिम उठाने वाले और कठिन और बहादुरी के काम करने वाले व्यक्तिओं को सम्मान, भोजन और वेतन समय पर देना चाहिए।राजा अपने राज्य में शिक्षकों और विनीत भाव में रहने वाले व्यक्तिओं को उचित सम्मान और पुरस्कार दें। शिक्षा व्यक्ति और समाज का चरित्र निर्माण करतीं हैं और शिक्षकों धन के अलावा सम्मान भी चाहिए इसलिए राजा को इन्हें सम्मान, धन और पुरस्कार देना चाहिए।
राजा का पांचवां धर्म यह है कि वह अपने पर पूरी तरह समर्पित और वफादार लोगों के परिवार का ध्यान रखना चाहिए और उनके बच्चों और पत्नी की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य का ख्याल रखें। राज्य को पूरी तरह समर्पित मंत्री अपने परिवार पर उतना ध्यान नहीं दे पाता इसलिए राजा को उनका ख्याल रखना चाहिए।
किसी भी राजा या प्रबंधक का छठा कर्त्तव्य है कि वह सभी को समान दृष्टि से देखे और कोई भी भेदभाव या पक्षपात न करें। यहां तक राजा को अपने विरोधियों और अहित चाहने वाले की भी बात सुनना चाहिए। राजा को किसी समुह विशेष का या अपने प्रिय जनों का पक्ष नहीं लेना चाहिए।
राजा, नायक या प्रबंधक का सातवां गुण उसकी सुगमता और अभिगम्यता है कहने का अर्थ यह है कि राजा से कोई भी व्यक्ति बिना भय या डर के मिल सके उसके राज्य या संस्था में सभी की सुनवाई हो और सभी निर्भीक होकर अपना पक्ष रख सके। राजा या प्रबंधक अपनी बुराई या निंदा को भी खुले मन से स्वीकार कर पाए। पाश्चात्य व्यवस्था आज के दौर में ओपन डोर पॉलिसी (open door policy) की बात करती है। जबकि भारतीय संस्कृति में काफी पहले ही इसे प्रबंधन का अभिन्न अंग बताया है।
राजा अपने राज्य में अवयस्क, शत्रु, कामुक और चोर इन में से किसी भी प्रकार के व्यक्ति को कर्मचारी रखता है तो उसका पतन निश्चित है क्योंकि इन चारों प्रवृति के व्यक्ति अपने काम में भी यही अवगुण लाकर सारे काम को खराब कर देंगे और प्रबंधक का नुक़सान कर देंगे।
राजा के यहां कृषि, व्यापार, वाणिज्य और जन कल्याण जैसे महत्वपूर्ण विभागों को सम्भाल ने वाले व्यक्ति बहुत ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए। यह सारे विभाग किसी भी राज्य की प्रगति और सम्पन्नता के लिए बहुत जरूरी है। राजा को हमेशा यह निश्चित करना चाहिए कि जन कल्याण, पैसों और व्यापार ठीक से चले और इनका लाभ राज्य के हर नागरिक को मिले।
राजा का दसवां धर्म इस बात को सुनिश्चित करना है कि उसके राज्य में स्त्रियों को उचित सम्मान दिया जाए। किसी भी राज्य की शोभा उस राज्य में स्त्रियों की स्थिति से बनती है। राजा को या प्रबंधक को स्त्रियों को उचित मौके समान अधिकार और उनकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखना चाहिए। स्त्रियां परिवार की आधारशिला होती है और उन्हें सम्मानित कर राजा न सिर्फ राज्य अपितु हर परिवार को सुखी रख सकता है।
राजा को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उसमें कहीं यह अवगुण तो नहीं है जो ज्यादातर हर राजा या प्रबंधक में आ जाते हैं वह नास्तिक तो नहीं है या उसका देवत्व या ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास नहीं है। राजा को अपने पद और सत्ता का अभिमान नहीं होना चाहिए। किसी भी नेता या राजा को असत्यता से बचना चाहिए। उसे किसी भी स्थिति में क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध बुध्दि का नाश कर देता है इसलिए क्रोध से बचना चाहिए या क्रोध के समय शांत रहना चाहिए। राजा को आलस, टालमटोल या किसी काम में विलंब से बचना चाहिए। राजा को अकर्मण्यता या निठल्लेपन से बचना चाहिए। राजा को हमेशा सलाह लेकर काम करना चाहिए। राजा को किसी एक ही व्यक्ति से सलाह नहीं लेनी चाहिए और किसी अयोग्य व्यक्ति से सलाह नहीं लेनी चाहिए। उसके पास हर विषय की समझ रखने वाले विशेषज्ञ होना चाहिए। राजा, लीडर, नायक या प्रबंधक को मन की चंचलता से बचना चाहिए और किसी भी तरह के प्रलोभन में नहीं पड़ना चाहिए।
राजा को जनकल्याण या सभी का भला करने वाली योजनाओं या कार्य में विलम्ब नहीं करना चाहिए। राजा को बिना सोचे समझे काम नहीं करना चाहिए किसी भी कार्य को करने से पहले उस कार्य की उचित योजना बना लेना चाहिए। राजा,लीडर नायक या प्रबंधक को हमेशा अपने ज्ञान में बढ़ोतरी करनी चाहिए और हमेशा अच्छी किताबें और ज्ञानार्जन करते रहना चाहिए। राजा को अपना निजी जीवन सबके सामने नहीं लाना चाहिए और अपने परिवारिक जीवन में हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए।
नारद मुनि द्वारा बताए गए यह सारे गुण आज भी किसी नायक प्रबंधक, निदेशक और ऊँचे पद पर आसीन व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है महाभारत का यही शाश्वत स्वरूप उसी हर समय के लिए उपयुक्त बनती है।
यह लेख इस्कॉन के प्रभु श्री आमोद लीला जी के महाभारत पर दिए गए व्याख्यान से प्रेरित है।
आज जब भारत एक सफल नेतृत्व में विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और बाहरी आतंकी संगठन को मुंह तोड़ जवाब दे रहा साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सक्षम और प्रभावी रूप में उभर रहा है तब यह लेख और भी प्रासंगिक हो जाता है।
जयतु भारतम् ।
डॉ जितेन्द्र पटैल।
Really good sir...I liked your content and that way you connected everything 👏
ReplyDeleteThanks for your kind words of appreciation 😊🙏🙏
DeleteSuch a wonderful share! Truly timeless wisdom beautifully expressed. ✨
ReplyDeleteThanks Shachi for your kind words of appreciation 🙏🙏
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