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आस्था का महत्व

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अपनी प्रसिद्ध कविता प्रियतम में भगवान विष्णु नारद मुनि को आस्था का महत्व समझाते हुए कहते है कि उनका प्रिय भक्त वह किसान है जो कि उनका नाम बस तीन बार लेता हैं परंतु वह ऐसा अपने दैनिक जीवन के साथ करता है। जब भी बात आस्था और भक्ति की होती है तो हमें ऐसा लगता है कि इसके लिए अलग से समय और तैयारी की आवश्यकता होगी पंरतु प्रभु का स्मरण तो दैनिक जीवन में कभी भी किया जा सकता हैं। प्रायः देखा गया है कि हम काम बिगड़ने अथवा विपत्ति आने पर  ही हम भगवान को याद करते हैं। पर अगर हम  आस्था को अपने जीवन का हिस्सा बना ले तो जीवन काफी आसान हो जाएगा। किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के दौरान आने वाले छोटे पड़ाव पर भी ईश्वर का धन्यवाद दें। आस्था इतना जठिल विषय नहीं हैं। वह तो दिन की अच्छी शुरूआत , खुबसूरत दुनिया, अच्छा भोजन और पंछियों के कलरव के प्रति कर्तज्ञता और आभार प्रकट कर के भी किया जा सकता हैं।  अंत में अपनी बात यह कहकर सामाप्त करूंगा कि मुश्किल की इस घडी़ में आस्था हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर देगीं और इस खाली समय का उपयोग हम अपनी आध्यात्मिक आस्था के पुर्नावलोकन के लिए कर सकते

परिवार का महत्व

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हमारे जीवन के तीन महत्वपूर्ण पहलु हैं। व्यावसायिक समाजिक एवं पारिवारिक। एक समय में हम इन में से ज्यादा से ज्यादा दो पहलु को संतुलित कर सकते हैं।और जब इनको चुनने की बारी आती हैं तो हम व्यावसायिक और समाजिक पहलु को ही प्राथमिकता देते हैं और इस आपाधापी में  हमारा परिवार कहीं न कहीं पीछे छूट जाता हैं। व्यावसायिक व्यस्ता के चलते  समाजिक प्रतिष्ठा और दोस्तों के साथ के कारण परिवार उपेक्षित रह जाता हैं। साप्ताहांत पर मिलने वाले अवकाश में भी कहीं घुमकर आ जाने से या लंबी छुट्टी में कहीं बाहर की सैर कर आने से हम अपनी परिवारिक जिम्मेदारी को निभा लेते हैं। कोरोना की रोकथाम के लिए मिलने वाली यह लंबी छुट्टी और घर से काम करनें की आजादी ने हमें हमारे परिवार के साथ वक्त बिताने का सुनहरा अवसर प्रदान किया हैं।  विशेष तौर पर अपने बच्चों के साथ और युवाओं के लिए यह समय अपने माता पिता के सनिध्य में रहने का हैं। बच्चों को सृजनात्मक कार्यो में व्यस्त रखें।उन्हें चित्र बनाना सिखाए संवादात्मक खेल खेले कहानी सुनाएं दिन का बड़ा भाग उनके साथ खेल कर व्यतित करें। हो सकता है यह मौका दुबारा ना आए। उनसे कुछ सीखें उन्हें

कोरोना से सबक

प्रकृति ने मानव को बहुत सारी नेमत दी हैं और उसे सभी प्राणियों में सबसे बुद्धिमान भी बनाया हैं। मानव ने अपनी बुद्धि का प्रयोग अपने जीवन को सुगम और सुविधाजनक बनाने में किया हैं। पंरतु इस प्रयास में उसनें प्रकृति का अत्यधिक दोहन करना शुरू कर दिया है और एक असामनता और असंतुलन को जन्म दिया है। कोरोना की महामारी हमारी इसी भूल का नतीजा हैं। प्रकृति के लेशमात्र हस्तक्षेप से पूरी दुनिया ठहर गई हैं।मानव सभ्यता को जिस विकास पर बहुत गर्व था और उसने अपने मनोरंजन और सुविधा के लिए जिन विशालकाय भवनों और संरचनाओं का निर्माण किया था वह आज खाली पड़े हैं। प्रकृति खुद को संतुलित कर रहीं है और उसनें मानव हस्तक्षेप को बिल्कुल रोक दिया है। कोरोना से हमें यह सबक तो सीख ही लेना चाहिए कि हम इस परितंत्र (ecosystem) के संचालक नहीं है वरन उसके सहभागी हैं। साथ में सबसे समझदार होने के नाते इस परितंत्र के संतुलन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारी हैं।  मैं अपनी बात इसी आशा के साथ समाप्त करना चाहुँगा कि हम अपनी जिम्मेदारी समझें प्रकृति के दोहन के साथ उसके पोषण का भी ध्यान रखें। मुश्किल की इस घड़ी में सतर्कता बरते साथ ही