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Showing posts from January, 2020

सुनने की क्षमता

 संचार कौशल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पंरतु उपेक्षित एवं अनदेखा तत्व है सुनने की क्षमता।क्योंकि प्रायः हम संवाद कौशल को हमारी बोलने की कला से जोड़ कर देखते हैं।  आज के तकनीकी युग में हमारे पास अपने आप को व्यक्त करने के कई साधन उपलब्ध हैं। परंतु  श्रौताओं की ध्यान अवधि में काफी कमी आई हैं और   विशेष वस्तु को आकर्षक और रोचक बनाना बहुत बड़ी चुनौती है। दो तरफा संचार को प्रभावी बनाने के लिए बोलने के अलावा सुनने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसा कि श्री दलाईलामा कहते है When you talk, you are only repeating what you already know. But if you listen, you may learn something new.”Dalai Lamba. अर्थात जब आप बोलते हैं तब आप वहीं बोलते जो आप जानते हैं। पंरतु जब आप सुनते हैं तो कुछ नया जानते है। जितेन्द्र पटैल।

भावनात्मक जुड़ाव

प्रबंधन और उधामिता के क्षेत्र में तार्किक बुध्दि का अपना ही महत्व हैं पंरतु कई बार लक्ष्य से भावनात्मक जुड़ाव हमें कुछ असंभव भी हासिल करने के लिए तैयार करता है। योजना तैयार करते वक्त हमें तार्किक बुद्धि का इस्तेमाल  करना चाहिए पर योजना के क्रियावन  के प्रति हमारी प्रतिबद्धता लक्ष्य से हमारे भावनात्मक जुड़ाव पर निर्भर करती हैं। उधामिता में एक बात हमेशा कही जाती हैं कि "ignorance is bliss" अर्थात अज्ञानता परमानंद है। कहने का मतलब है किजब हम किसी बात के बारे में ज्यादा नहीं जानते तब हम उसे करते समय असंभव लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं क्योंकि ज्ञान के अभाव में हम तर्क वितर्क करें बिना लक्ष्य से भावनात्मक रूप से जुड़ जातें हैं। जैसा की राबिन शर्मा कहते हैं कि "The mind can be a limiter. The emotions are the liberator". Robin Sharma. अर्थात बुद्धि हमें बांधती हैं वही भावनायें हमें मुक्त करतीं हैं । लक्ष्य निर्धारण और उसकी प्राप्ति के संदर्भ में यह बात शत प्रतिशत सही है। जितेन्द्र पटैल

अभ्यास की शक्ति

"करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।  रसरी आवत जात हैं सील पर पड़त निशान ।।"संस्कृत के  महान कवि वृन्द द्वारा रचित यह दोहा अभ्यास  का  महत्व समझता हैं और हमें हमेशा अभ्यास करने के लिए प्रेरित करता हैं। अभ्यास से ही कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी बुध्दिमान हो सकता हैं । रस्सी के आने जाने पर पत्थर पर  भी निशान आ जाते हैं। " Those who sweat in peace have to bleed less in war".  Norman Schwarzkopf अर्थात  शांति के समय पसीना बहाने वालों को युद्ध में कम रक्त बहाना पड़ता हैं। निरन्तर किया गया अभ्यास हमें बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार करती हैं। कड़ी मेहनत और अभ्यास का कोई विकल्प नहीं हैं। अभ्यास की शक्ति को पहचान कर से सारे कार्यो में सफल हुआ जा सकता हैं। जितेंद्र पटैल। 

समय की उपयोगिता

एक बार एक व्यक्ति झील के किनारे बैठ कर अपनी पोटली में से कुछ चमकीले पत्थर पानी में फेंक रहा था।काफी देर तक उसे ऐसा करते देख पास खड़े एक व्यक्ति ने उससे पूछा की ये तुम क्या पानी में फेंक रहे हो तब वह बोला की कुछ फालतू पत्थर पानी में डाल रहा हूँ।पंरतु जब उस व्यक्ति के कहने पर आदमी ने पोटली मे देखा तो पाया कि जिसे वह फालतू पत्थर समझ रहा था दरअसल में वो तो बहुमूल्य हीरे है। पर अब काफी देर हो चुकी थी और उसके पास कुछ ही हीरे शेष रहें थे।   कहीं हम भी तो अपनी किमती समय को फालतू समझ कर व्यर्थ तो नहीं कर रहे हैं। समय की उपयोगिता जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सबक हैं। सही समय पर और समय रहते हुए किए गए कार्य से ही सफलता निधार्रित होती हैं। अतः हमें अपने हर क्षण को उपयोगी बनाने पर ध्यान देना चाहिए। अगर हमने अपने समय का उचित प्रबंधन किया तो हमारे पास परिवार, समाज,कार्यक्षेत्र ओर अपनी रुचियों के लिए पर्याप्त समय होगा। जितेंद्र पटैल।

स्थिर मन

हवा में फड़फड़ाते हुए झंडे को देख कर एक मित्र दुसरे मित्र से कहता हैं कि फड़फड़ाहट हवा में हैं। तो  दुसरा मित्र कहता है कि नहीं फड़फड़ाहट झंडे में है। अपनी इस दुविधा से जब वह अपने गुरु को अवगत   करते हैं। तो गुरु उत्तर देते हैं कि असली फड़फड़ाहट मन में हैं। कहने का अर्थ यहीं हैं कि जब तक मन स्थिर नहीं होगा तब तक  बाहरी दुनिया के  आकर्षण हमें  आकर्षित करते रहगें और हमें अपने लक्ष्य प्राप्ति से भटकाते रहेगें। अपने मन को स्थिर करके हर लक्ष्य को हांसिल किया जा सकता हैं। स्थिर मन मे ही चेतना का वास होता है। जितेंद्र पटेल

भगवान बुद्ध की प्रमुख शिक्षाए

हमें अपने आप को भाग्यवान मानना चाहिए कि हमारा जन्म उस कालखण्ड में हुआ जब हमें भगवान बुद्ध की शिक्षा का सान्निध्य प्राप्त हुआ। भगवान बुद्ध की शिक्षा वर्तमान समय इसलिए भी प्रासंगिक हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करनें के लिए हमें अपनी जिम्मेदारियों से अलग नहीं होना पड़ता हैं। इस लेख के माध्यम से मैं भगवान बुद्ध की प्रमुख  शिक्षाओं पर प्रकाश डालना चाहुंगा। मृत्यु एक अटल सत्य है और कोई भी उसे झूठला नहीं सकता। हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए ताकि हम अपने जीवन के प्रत्येक  क्षण को मन भर जी सकें। जब मन स्थिर नहीं होगा तब तक नकारात्मक विचार आते रहेंगे। मन को स्थिर होने का थोड़ा समय दिजिये नकारात्मक भाव हट जाएगें और मन स्पष्ट एवं शांत हो जाएगा। क्रोध क्रोधी को ही क्षति पहुंचाता हैं। अर्थात क्रोधी व्यक्ति क्रोधित अवस्था में दुसरो से ज्यादा खुद का नुकसान कर सकता है। आध्यात्मिक ज्ञान से ज्यादा व्यवहारिक ज्ञान पर बल देना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यवहारिक जगत में रहते हुए हमें व्यवहारिक कार्य कुशलता पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए क्योंकि दैनिक जीवन में यह काफी उपयोगी है और व्यवहारि

सकारात्मक बदलाव

एक बार एक व्यक्ति सागर किनारे लहरों में आ रही मछलियों को जीवनदान देने के उद्देश्य से उन्हें फिर से सागर में फेंक रहा था।उसे   ऐसा करते देख उसके मित्र ने उससे कहा कि यहाँ तो प्रतिदिन हजारों मछलियां अपने प्राण त्याग  देती हैं। तुम्हारे कुछ मछलियों के प्राण बचाने से कोई विशेष बदलाव नहीं आ जाएगा। ऐसा सुनकर वह व्यक्ति कहता है कि मैंने अपने प्रयास से इन मछलियों का जीवन बदल दिया मेरे लिए यहीं काफी हैं। एक शिक्षक प्रबंधक एवं मार्गदर्शक होने के नाते हमारा भी परम उद्देश्य अपने छात्रों अधिनस्थों एवं अनुनयों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना हैं और ऐसा करते समय हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमनें कितने लोगों के जीवन को प्रभावित किया। हमारा दायरा कितना भी छोटा क्यों न हो हमें इस बदलाव की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखना चाहिए। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जितेंद्र पटेल।

छोटे प्रयास बड़े बदलाव।

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कई बार हम किसी कार्य की भव्यता और जटिलता देख कर ही उस कार्य से किनारा कर लेते हैं। हमें लगता है कि यह कार्य इतना बड़ा है कि हमारे कुछ न करने से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़गा। इस संदर्भ में रमायण में विचरित एक प्रसंग छोटे प्रयासों का महत्व समझाता हैं। लंका पर विजय प्राप्ति हेतु श्री राम ने वानरों को समुद्र पर बांध बनाने का आदेश दिया। सारे वानर बड़ी बड़ी शिलाओं को उठा कर। विशाल वृक्षों को काटकर और बहुत सारी बालु लेकर बांध का निर्माण कर रहे थे। इतने बड़े समुद्र पर बांध बनाना बहुत ही बड़ा और जटिल कार्य था।वही एक छोटी सी गिलहरी बार बार किनारे पर जाकर अपने पूरे शरीर पर बालु लगाकर फिर बांध पर आकर अपनी सारी बालु झड़ा देती थी।उसे ऐसा करता देख सारे वानर उसका उपहास करने लगें। उन्होंने कहा की इतनी विशाल संरचना में तुम्हारा प्रयास काफी छोटा है। पंरतु श्री राम ने न सिर्फ नन्ही गिलहरी के प्रयास को सराहा एवं उसे प्रोत्साहित भी किया। उन्होंने वानरों को समझाते हुए कहा कि कोई भी प्रयास छोटा नहीं होता । यह नन्हा जीव अपने पूरे सामर्थ्य से अपना कार्य कर रही हैं। इसके द्वारा किए गए विनम्र प्रयास की हमें प्रशंसा करनी चाह

आलस्य

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एक बार एक व्यक्ति अपनी सारी बुरी आदतें बेच रहा था।   उसमें झूठ बोलना, बेईमानी, कामचोरी, कपट, धुर्थता, चाटुकरिता आदि थे। अपेक्षा के अनुसार उसे सारी बुराइयों की काफी अच्छी कीमत मिल रही थीं। इसके साथ एक और बुराई की उसे सबसे ज्यादा कीमत मिल रही थी परंतु लाख समझाने बाद भी वह इस बुराई को बेचने पर राजी नहीं हुआ। जब उस से उस बुराई के न बेचने का कारण पुछा गया तो उसने बताया कि   इस बुराई के रहते बाकी सारी बुराइयों को फिर से हासिल करनें मे उसे कोई विशेष कठिनाई या देर नहीं लगेगी। मगर   किसी भी तरह उस बुराई के न रहते बाकी बुराइयों को नहीं लाया   जा सकता है। अतः उस बुरी आदत को कितनी भी कीमत में बेचना उचित नहीं है। जानते है वो कौन सी आदत थी। आलस्य।। आलस्य सारी बुराइयों की जड़ हैं । अगर जीवन मे सफल होना है तो आलस्य को त्यागिए और हर मंजिल हासिल करें। आलसी वयक्ति   बड़ी आसानी से दूसरी बुरी आदतों मे लिप्त हो जाता हैं। विजय का एक ही मूल मंत्र हैं आलस्य का त्याग। यह लेख अखण्ड ज्योति में प्राकाशित लधु कथा से प्रेरित है।   जितेंद्र पटेल।