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आदेश एवं अनुरोध

मेरा ऐसा मानना है कि जहाँ अनुरोध से काम चल जाए वहां आदेश की आवश्यकता नहीं होती है। आमतौर पर देखा गया है कि हम अपने अधिनस्थों , विधार्थीओं और अपने नीचे काम करने वालों के प्रति अपना रवैया आदेशात्मक होता है। हमारे शिक्षित होने का सबसे बड़ा सबुत हमारे व्यवहार में झलकता है। विशेषताः हम उन लोगों से कैसे बात करते हैं जिनसे हमें कोई काम नहीं हो या जो हमें कोई फायदा या नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। धन्यवाद कहने का मौका मत छोड़िए।आदेशात्मक निर्देशों को प्रश्नात्मक निर्देशों में बदलिए। इस तरह आप अपने अधिनस्थों एवं विधार्थियों को निर्णय प्रकिर्या में सम्मिलित करेंगे और वह कार्य के प्रति ज्यादा जबाबदार बनेंगे। छोटो  का सम्मान और अनुरोध से वह काम भी हो जाते है जो आदेश नहीं कर सकते हैं।  जितेन्द्र पटैल।

कोरा ज्ञान

बचपन में शायद हम सभी ने पंडित और मल्लाह की कहानी पढीं होगी जिसमें पंडित जी मल्लाह को पढा़ लिखा न होने का ताना देते हैं। पर मल्लाह बीच मजधार से पंडित जी की जान बचा कर अपना कौशल सिद्ध करता है| कहीं अपनी शिक्षा व्यवस्था के साथ भी तो यहीं नहीं हो रहा है। हमारा ध्यान पंडित जी की तरह सिद्धांतिक शिक्षा पर है जबकि कौशल विकास पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। जब हम रोजगारोन्मुखी शिक्षा की बात करतें हैं तब हमारी शिक्षा काफी पीछे होती हैं। कौशल और क्षमता ही हमें रोजगार दे  सकती हैं। साथ ही उधामिता और नवोन्मेष पर भी सार्थक पहल कुशलता पर बात कर ही हो सकती हैं। कौशल विकास को शिक्षा का अभिन्न अंग बना कर  ही शिक्षा को सार्थक और बहुआयामी बनाया जा सकता हैं। वरना उपरोक्त प्रस्तुत कहानी से मिलने वाली सीख की तरह ही हमारी शिक्षा भी  मात्र कोरा ज्ञान ही रह जाएगीं।  जितेन्द्र पटैल। 

अवसर और सम्मान

एक बार एक ऊँट का बच्चा अपनी माँ से पूछता हैं कि हमारे पंजे बड़े और नरम क्यों है तो माँ कहतीं हैं ताकि हम गरम रेत पर चल सके। फिर वह पूछता हैं कि हमारी गर्धन इतनी लंबी क्यों है । इस पर माँ उत्तर देती है रेगिस्तान में झाडियों में हरे पत्ते ऊपर की तरफ ही लगते हैं। लंबी गर्धन से हम उन्हें ठीक से खा सकते है। जिज्ञासु पुत्र फिर से सवाल करता है कि हमारी पीठ पर बड़ासा उठाव किस लिए हैं तब माँ बताती है कि रेगिस्तान में भोजन की कमी के कारण हम अपनी पीठ में भोजन जमा कर सकते है। इन सब गुणों के कारण ही हमें रेगिस्तान का जहाज कहा जाता हैं। इस पर पुत्र पुनः बोलता है कि फिर माँ हम इस चिडिय़ाघर में क्या कर रहे है। इस सवाल का कोई भी उत्तर माँ के पास नहीं होता है।  हमें भी इस बात को हमेशा समझना चाहिए कि हमारी क्षमता, ज्ञान और कौशल का सही महत्व एवं सम्मान तभी है जब हम उचित जगह पर होतें हैं। साथ ही जब हमें वह स्थान प्राप्त होता है तो हमें अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करना चाहिए। और जब तक हम उस स्थान पर नहीं पहुंच पाते तब तक हमें अपने ज्ञान और कौशल पर काम करते रहना चाहिए और उचित स्थान पर आने का प्रयास करत...

उत्साहवर्धन

किसी से सुबह सुबह हँस के मिलना उसका पूरा दिन अच्छा कर सकता है। छोटी छोटी तारीफें, किसी को बात रखने का मौका देना ,किसी की बात सुनना उस व्यक्ति को उत्साहित करती हैं और वह अपनी बात ज्यादा अत्मविश्वास के साथ कह सकता हैं। एक शिक्षक और प्रबंधक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने विधार्थी एवं अधिनस्थों का उत्साहवर्धन हैं। आपके द्वारा की गई तारीफ उसे अपने विचारों को स्पष्ट तरह से प्रकट करनें का साहस देती हैं। छोटे शहरों और कस्बों से आए बच्चे शायद पहली बार मंच का सामना कर रहे हो उस समय उन्हें साहस देना उनका मनोबल बढ़ाना काफी महत्वपूर्ण है। एक शिक्षक एवं प्रबंधक के जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब वह अपने विधार्थी की तारीफ करेंं परंतु प्रायः हम छोटी छोटी बातों की तारीफ नहीं करते हैं और हमेशा कुछ बड़ा करनें पर ही प्रंशसा करते है। याद रखें किसी की तरफ मुसकुराना, उसकी खुले मन से की गई प्रसंशा, पीठ थपथपना,हँस कर मिलना विधार्थी एवं अधीनस्थों को अपने ज्यादा करीब लाती हैं और वह अपके द्वारा दिए गए कार्योंं को पूरे उत्साह और ईमानदारी से करते हैं। यहां मैं यह भी  स्पष्ट करना चाहुँगा कि कार्य का मूल्याँ...

ज्ञान और कौशल

हमारा ज्ञान और कौशल उस लकड़ी के पट्टे की तरह हैं। जो हमें बोझ की तरह लगता हैं। परंतु आगे आने वाली खाईं को पार करने में बांध की तरह काम करता हैं। और यह पट्टा जितना बड़ा होगा हम उतनी बड़ी खाईं को पार कर सकते हैं। अर्थात जिस ज्ञान और कौशल के अर्जन को हम अपने समय की बर्बादी मानते हैं। वह सही समय आने पर हमारी सफलता में महत्वपूर्ण  योगदान देती हैं।  जिस प्रकार  कम ईंधन की गाड़ी मंजिल आने से पहले ही रूक जाती हैं। उसी तरह कौशल विकास और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान न देना पर हम सफल होने से पहले ही रुक जातें हैं। सफल संस्थान और अच्छे प्रबंधक अपने कर्मचारियों और अधिनस्थों के व्यक्तिगत विकास पर निवेश करतीं हैं। और प्रायः देखा गया है कि ऐसे संस्था में कर्मचारी ज्यादा समय तक काम करते हैं। संस्था और प्रबंधक को यह ज्ञात होना चाहिए कि कर्मचारियों के व्यक्तिगत विकास में ही संस्था का विकास हैं। यह लेख राबिन शर्मा की पुस्तक डेली इंसपिरेशन में प्रकाशित अंश से प्रेरित हैं। जितेन्द्र पटैल

सुनने की क्षमता

 संचार कौशल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पंरतु उपेक्षित एवं अनदेखा तत्व है सुनने की क्षमता।क्योंकि प्रायः हम संवाद कौशल को हमारी बोलने की कला से जोड़ कर देखते हैं।  आज के तकनीकी युग में हमारे पास अपने आप को व्यक्त करने के कई साधन उपलब्ध हैं। परंतु  श्रौताओं की ध्यान अवधि में काफी कमी आई हैं और   विशेष वस्तु को आकर्षक और रोचक बनाना बहुत बड़ी चुनौती है। दो तरफा संचार को प्रभावी बनाने के लिए बोलने के अलावा सुनने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसा कि श्री दलाईलामा कहते है When you talk, you are only repeating what you already know. But if you listen, you may learn something new.”Dalai Lamba. अर्थात जब आप बोलते हैं तब आप वहीं बोलते जो आप जानते हैं। पंरतु जब आप सुनते हैं तो कुछ नया जानते है। जितेन्द्र पटैल।

भावनात्मक जुड़ाव

प्रबंधन और उधामिता के क्षेत्र में तार्किक बुध्दि का अपना ही महत्व हैं पंरतु कई बार लक्ष्य से भावनात्मक जुड़ाव हमें कुछ असंभव भी हासिल करने के लिए तैयार करता है। योजना तैयार करते वक्त हमें तार्किक बुद्धि का इस्तेमाल  करना चाहिए पर योजना के क्रियावन  के प्रति हमारी प्रतिबद्धता लक्ष्य से हमारे भावनात्मक जुड़ाव पर निर्भर करती हैं। उधामिता में एक बात हमेशा कही जाती हैं कि "ignorance is bliss" अर्थात अज्ञानता परमानंद है। कहने का मतलब है किजब हम किसी बात के बारे में ज्यादा नहीं जानते तब हम उसे करते समय असंभव लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं क्योंकि ज्ञान के अभाव में हम तर्क वितर्क करें बिना लक्ष्य से भावनात्मक रूप से जुड़ जातें हैं। जैसा की राबिन शर्मा कहते हैं कि "The mind can be a limiter. The emotions are the liberator". Robin Sharma. अर्थात बुद्धि हमें बांधती हैं वही भावनायें हमें मुक्त करतीं हैं । लक्ष्य निर्धारण और उसकी प्राप्ति के संदर्भ में यह बात शत प्रतिशत सही है। जितेन्द्र पटैल