आत्मनिर्भर और विकसित भारत में कृषि की भूमिका एवं योगदान

 कृषिं विना न जीवन्ति जीवाः सर्वे प्रणश्यति। तस्मात् कृषिं प्रयत्नेन कुर्वीत सुखसंयुतः॥

अर्थात कृषि के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता; सब कुछ नष्ट हो जाएंगा । इसलिए परम सुख और आनंद के लिए मनुष्य को लगन से कृषि कार्य में लग जाना चाहिए।

भारत में कृषि केवल एक व्यवसाय या कार्य नहीं है अपितु  यह एक सभ्यता का आधार, हमारी सांस्कृतिक पहचान और एक रणनीतिक संपत्ति है। 

 भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की महत्वाकांक्षी यात्रा पर निकल पड़ा है। इस परिवर्तनकारी यात्रा में कृषि की भूमिका सबसे आगे और महत्वपूर्ण है। विकसित भारत 2047 और आत्मनिर्भर भारत (स्व-निर्भर भारत) का सपना हमारी कृषि  और ग्रामीण विकास के बिना अधूरी है।

भारत की 50% से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है,अर्थव्यवस्था में भी, 2024 के आकड़ो के अनुसार कृषि लगभग 43% कार्यबल को रोजगार देती है। यह क्षेत्र न केवल ग्रामीण आजीविका की रीढ़ है, बल्कि राष्ट्रीय विकास का आधार भी है।  कृषि आधुनिकीकरण और कृषि में उन्नत तकनीकों का उपयोग से यह क्षेत्र कई नई हरित नौकरियां पैदा कर सकता है।

कृषि को मजबूत करने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 60 करोड़ से अधिक भारतीयों का सीधा उत्थान होता है, जिससे आय वृद्धि, खपत और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे जैसे संबद्ध क्षेत्रों की मांग बढ़ती है। रोजगार पैदा करने, गरीबी कम करने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में कृषि अभूतपूर्ण योगदान है।

राष्ट्रीय बीज मिशन और स्वदेशी संकर किस्मों जैसी पहल से भारत में गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन और वितरण  करने की क्षमता में आत्मनिर्भर हो सकता है। मेक इन इंडिया के तहत घरेलू निर्माण के माध्यम से आयातित उर्वरकों, कीटनाशकों और कृषि उपकरणों पर निर्भरता कम कर आत्मनिर्भर भारत की तरफ मजबूत कदम उठा सकता है ।

आत्मनिर्भर भारत के  नवाचार और अनुसंधान से आज हम एआई-आधारित फसल निगरानी, ड्रोन छिड़काव और सटीक सिंचाई जैसे स्वदेशी कृषि-तकनीक से पैदावार में सुधार कर रहे हैं और स्टार्ट-अप इंडिया, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और डिजिटल कृषि मिशन जैसे कार्यक्रम से सटीक खेती, स्मार्ट मौसम विश्लेषण और मृदा स्वास्थ्य निगरानी और जैव-उर्वरक और जैव-कीटनाशकों में नवाचार पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के संकट को भांपते हुए हम  सूखे, बाढ़ और कीटों के हमलों के सामने खाद्य उत्पादन को सुरक्षित करने के लिए उन्नत फसलों का विकास कर रहे हैं।

विकसित और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर किसानों की आय को दोगुना करना और स्थिर करना है । बागवानी, फूलों की खेती, डेयरी, मुर्गीपालन और मत्स्य पालन को बढ़ावा देने से आय में वृद्धि हो सकती हैऔर इ- किसान योजना , बेहतर मूल्य प्राप्ति, वैश्विक बाजारों तक पहुंच,  ग्रामीण गोदाम, कोल्ड चेन का विकास कर भारत कृषि की आय को दुगना और स्थिर कर सकता है।

कृषि में आत्मनिर्भर भारत का मतलब है खाद्य, बीज और 2047 तक कृषि  में शीर्ष निर्यात  देशों में से एक बनना है। एक भारतीय नागरिक के रूप में हमे पूरा विश्वास है कि पारंपरिक ज्ञान, अत्याधुनिक तकनीक, मजबूत नीतिगत ढांचे और उद्यमशीलता की भावना के बीच सही तालमेल से भारत दुनिया को खिलाने, विश्व को स्वस्थ करने और अपने लोगों का उत्थान करने में सक्षम बनेगा और कृषि में  आत्मनिर्भर भारत के महावत्वकांशी सपने को साकार करेगा।

यह ब्लॉग प्रिय मित्र राम जी के अनुरोघ पर लिखा गया है जो की खुद कृषि क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर किसानो में जागरूकता फैला रहे है और कृषि में आत्मनिर्भरता में एक सकारात्मक भूमिका निभा रहे है इस ब्लॉग के प्रेरणा के लिए लेखक उन्हें धन्यवाद करते है।

डॉ जितेन्द्र पटैल 

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