श्रेष्ठ प्रबंधक हनुमान
भारतीय शिक्षा पध्दति एवं ग्रंथ प्रबंधन शिक्षा के असंख्य उदाहरण से भरे पड़े हैं। वैसे तो हर ग्रंथ को प्रबंधन से जोड़ा जा सकता है। परन्तु श्रीमद भगवत गीता और रामायण प्रबंधन के सर्वोपरि एवं महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं।
मेरा ऐसा मानना
है कि रामायण चत्रित निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के लिए सर्वोत्तम कथा हैं। रामायण
का हर एक पात्र अपने आप में आदर्श व्यक्तित्व का धनी हैं। अपितु हनुमान जी को
रमायण में वर्णित सर्वोत्तम एवं उत्तम चत्रित कहना कदापि अनुचित नहीं होगा। हनुमानजी
के गुणों का वर्णन करने के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना
की और रामचरित मानस का एक अध्याय सुंदरकांड उन्हें के पराक्रम को समर्पित किया। यो
तो हनुमानजी गुणों की खान हैं। वह कर्तव्यनिष्ठ, स्वामी भक्त एवं अतुलित साहासी है। आइए
हनुमानजी के जीवन से कुछ प्रबंधन के गुण सीखे।
लक्ष्य पर फोकस
लंका जाते वक्त हनुमान जी ने कहीं विश्राम नहीं किया। मैनाक पर्वत के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहें और सीता जी से भेंट के बाद और लंका दहन के बाद ही विश्राम किया । हम में से कई लोग अपने लक्ष्य के बीच में आए छोटे प्रलोभन से विचलित हो लक्ष्य से भटक जाते हैं। ऐसे समय में हनुमानजी से हम सफल होने की शिक्षा ले सकते हैं।
क्रोध पर संयम
लंका दहन के समय अत्यधिक क्रोध में होने के बाद भी विभिषण के घर को आग नहीं लगाई और खुद को भी नुकसान नहीं होने दिया। क्रोध में लिये गलत निर्णय से न कोई भी प्रबंधक अपना और अपने अधीनस्थों का बड़ा नुकसान कर देता हैं और बाद में पछताता हैं। हनुमानजी से भारी समय में निर्णय लेना और क्रोध पर संयम रखना सिखने योग्य हैं।
प्रामाणिकता एवं अक्नोलेजमेंट
प्रबंधन में कार्य समापन्न के बाद उसके प्रामाणिकता एवं अक्नोलेजमेंट का बड़ा महत्व है। हनुमानजी ने सीता माता से मिलने पर राम जी की अंगुठी भेंट कर अपने राम दुत होने का परिचय दिया। और वहां से आते वक्त सीता जी का चुडामन देकर कार्य के सफल होने का अक्नोलेजमेंट दिया। काफी सारे प्रबंधक कार्य करके उसका प्रामाणिकता एवं अक्नोलेजमेंट देना भुल जाते हैं। और फिर उनके कार्य का कोई मुल्य नहीं रहता और उसे किसी और के द्वारा फिर से करना पड़ता है। हमें यहां हनुमानजी जी कार्य के साथ प्रामाणिकता एवं अक्नोलेजमेंट का महत्व भी समझाते हैं।
शक्ति का सही उपयोग
हममें से कई लोग अपनी शक्ति का प्रयोग किसी को भयभीत करनें के लिए करते हैं यह बात ऊँचें पदों पर असीन प्रबंधको द्वारा अपने अधिनस्थों पर किए गए व्यवहार में झलकती हैं। यंहा हनुमान जी हमें अच्छे नेतृत्वकर्ता का उदाहरण देते हैं जब माता जनकी को संदेह होता है कि उन जैसे ही वानर रावण की विशाल और बलवान सेना का सामना कैसे करेंगें तब सीताजी का भय दूर करनें के लिए वह अपने बलशाली रूप में आते हैं और सीताजी को विश्वास दिलाते हैं। यहाँ एक प्रबंधक एवं नायक के रूप में हमें यह समझना चाहिए कि हमें अपनी शक्ति का उपयोग किसी को डराने में नहीं अपितु उसके डर को दूर करने के लिए करना चाहिए ।
सहजता
हम मैं कई लोग कार्य करने से पहले ही अपनी तार्किक बुध्दि का उपयोग कर कार्य को जठिल एवं असंभव मान उसे बिना किए ही छोड़ देते है। ऐसे समय में हमें हनुमानजी के सहज स्वभाव को याद करना चाहिए। संजीवनी बुटी का ज्ञान न होने पर तर्किक बुध्दि का प्रयोग न करते हुए सहज स्वभाव के कारण पूरा पर्वत ही लेकर आ गए। कई ज्ञान और तर्क के अलावा सहजता से कठिन कार्य संभव हो जाते है।
विनम्रता
वह कर्तव्यनिष्ठ, स्वामी भक्त एवं अतुलित साहासी है। इतने गुण होते हुए भी हनुमानजी विनम्र है जब समुद्र लाँघने का दुर्लभ कार्य करने के बाद माता सीता से हुई पहली भेंट में वह अपना परिचय राम के दूत के रूप में देते हैं और अपने साहस और बुद्धि का कोई बखान नहीं करते हैं। लंका दहन के बाद राम जी उनकी बल और बुद्धि की प्रसंशा करते हैं तब भी हनुमानजी अपने पराक्रम का सारा श्रैय भगवान की कृपा और प्रभुता को ही देते हैं। एक प्रबंधक जब भी उच्च पदों को प्राप्त करता है तब उसके व्यवहार में विन्रमता का स्थान गर्व और बड़बोलापन ले लेता है यहां हमें हनुमानजी से विनम्रता सीखनी चाहिए क्योंकि यहीं गुण हमें महान और सम्मानित बनाता है एवं अपने अधिनस्थों में अपने प्रति आदर भाव लाता हैं।
लॉयाल्टी
स्वामी भक्त हनुमान बिना किसी पूर्वाग्रह के श्रीराम का आदेश मानते थे। सीता जी द्वारा दिए गए बहुमूल्य रत्नों को ठुकरा कर हृदय में राम की छवि के दर्शन करा अपनी लॉयाल्टी का प्रदर्शन किया। आज का युवा जब भी जॉब करने जाता हैं तो थोड़े से अल्पकालिक लाभ के लिए दीर्घकालिक लॉयाल्टी त्याग देते है। कोरोना काल मे आई मंदी में संस्थानों ने अपने लॉयाल कर्मचारियों को जॉब से नहीं निकाला। हनुमानजी की तरह लॉयाल्टी हमेशा कठिन समय मे काम आती हैं।
आशा करता हूँ कि हनुमानजी का प्ररेणादाई व्यक्तित्व हमें एक अच्छा नायक बननें के लिए प्रेरित करता रहें।यह लेख श्री हनुमानजी के परम भक्त डॉ. पुनीत कुमार द्वीवेदी जी की प्रेरणा से लिखा गया हैं।
यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।
जितेन्द्र पटैल।
Bahut sundar.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद अमित जी हनुमान जी का जीवन हमें युहीं प्रेरणा देता रहें।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद रोहन
Deletehttps://www.jharkhand365.com/2021/04/blog-post_83.html?m=1
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पड़ा अच्छी प्रस्तुति है
DeleteNice sir
ReplyDeleteThanks Buddy
DeleteNice content sir keep going
ReplyDeleteThanks for the nice words of appreciation 🙏🙏🙏
DeleteWow sir!! This was really amazing 😍
ReplyDeleteThanks Mansi for the nice words of appreciation 🙏🙏🙏
DeleteKeep going sir ...😍😍
ReplyDeleteThanks for your nice words of appreciation
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