जीवन यात्री
एक बार एक यात्री सफर पर था। सफर करतें हुए रात हो जाने पर वह एक सुफी संत की कुटिया में आराम करनें का निश्चय करता हैं।
वहां पहुंचने पर वह पाता हैं कि संत की कुटिया में बहुत कम समान हैं अचरज में पड़ा यात्री संत से इतने कम समान का कारण पुछता है इस पर संत उसे उसके द्वारा लाए गए कम समान का कारण पूछता है तो वह कहता है कि में तो यात्री हुँ। संत उत्तर देते हुए कहता हैं मैं भी यात्री हूँ।
सुफी संत की यह कहानी हमें अपने अड़ाबरों को छोड़ने की शिक्षा देता हैं। हम अपने जीवन में संचय करतें वक्त यह भूल जाते हैं कि हमारा जीवन सिमित हैं। आदरणीय महात्मा गांधी ने भी कहा था कि इस विश्व में सबकी जरूरत के लिए पर्याप्त संसाधन है परंतु किसी के लालच के लिए नहीं। जब हमारी प्रवृत्ति लालच और लाभ कमाने की हो जाती हैं तब हमारी इच्छा कभी खत्म नहीं होती हैं। हमें यह बात नहीं भुलना चाहिए कि दुसरो के हक को छीन के हम भी सुखी नहीं रह सकते हैं। और हमारा असल संचय हमारे अच्छे कर्म , दुसरे के प्रति हमारा व्यवहार, हमारा साहस और शौर्य हैं।
Nice read!!!
ReplyDeleteThanks
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete🙏🙏🙏
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteNice👏👏😍
ReplyDeleteThanks Harshita
DeleteNice👏👏😍
ReplyDelete🙏🙏🙏
DeleteThanks
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