खुशी
एक बार एक महिला भगवान बुद्ध से कहतीं हैं कि "मुझे खुशी चाहिए"।
बुध्द उत्तर देते हुए उसे कहतें हैं कि पहले मुझे या मैं हटाओं यह अंहकार को प्रदर्शित करता हैं। फिर चाहिए को दूर करों क्योंकि यह तृष्णा या अपेक्षा को दिखलाता हैं। अब देखो तुम्हारे पास बस खुशी ही शेष हैं।
खुशी जैसे साधारण और आसानी से मिल जाने वाले अहसास को हम अपने अंहकार और अपेक्षाओं के चलते जठिल और दूरगामी बना लेतें हैं। हम ज्यादातर बार तो इसलिए नहीं खुश हो पाते क्योंकि हमारा अहम हमें छोटी खुशियों में खुश नहीं होने देता हैं। कई बार हम सामने वाले के साथ नहीं खुश नहीं होते हैं क्योंकि उस व्यक्ति के साथ अहम आड़े आता हैं। खुश न होने का दुसरा कारण हैं खुद और दुसरे से अपेक्षा । अपने से अगर अपेक्षा अगर कम हो तो हम थोड़े में ही खुश हो सकते हैं । साथ में जब हम दुसरे से अपेक्षा रखतें है । अपेक्षा हमेशा हमें निराश ही करतीं हैं। दुसरो से की गई कम अपेक्षा हमें उनके द्वारा की गए छोटे प्रयास भी प्रसन्न कर सकते हैं। अपने खुशी के पैमाने कम रखें और अपेक्षा सिमित तब हम छोटी और महत्वपूर्ण चीजें में खुश हो सकते हैं। साथ ही अपनी खुशी को वस्तुओं ,वयक्तियों, और सभी की खुशी से जोड़ कर न देखें नहीं तो प्रसन्नता आपसे हमेशा दुर ही रहेंगी।
जितेन्द्र पटैल।
👌👌 बहुत सही बात भाईसाहब, 🌱
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
DeleteNice 😍
ReplyDeleteThanks for your kind word of appreciation 🙏🙏🙏
DeleteVery effective Airtical
ReplyDeleteThanks for your kind word of appreciation 🙏🙏🙏
DeleteNice article.
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद मित्र।
DeleteGreat words
ReplyDeleteThanks a lot 🙏🙏🙏
Delete