कौआ की व्यथा

 एक बार एक कौआ अपनी रूप रंग और काली काया से काफी व्यथित रहता हैं। उसे यंही लगता है कि उसे कोई पंसद नहीं करता वह जँहा भी जाता हैं उसे सब भगा देते हैं। 

वह अपनी यह व्यथा लेकर हंस के पास जाता हैं। हंस का सफेद शरीर उसे मोह लेता हैं और वह बोलता है कि तुम तो बहुत ही सुंदर देखते हो इस पर हंस उसे कहता हैं कि मैं तो एक ही रंग का हुँ । तुम तोते से मिलो उसकी चोंच लाल और पंख हरे हैं। 

तब कौआ तोते के पास जाता हैं। तोते को देखकर वह बहुत खुश होता हैं। पर तोता उस से कहता है कि मुझसे सुंदर तो मोर हैं उसके सिर पर सुंदर कलगी हैं। उसकी लंबी और सुर्ख नीली गर्दन है और पंख काफी बड़े और विशाल हैं जब वह अपने हरे पंखों को फैला कर नाचता हैं तब सबका मन मोह लेता हैं। 

कौआ जब मोर से मिलता है तो हर्षित हो जाता है उसने इतना सुंदर पक्षी कभी नहीं देखा था। पर मोर उस से कहता है कि मेरी यह सुंदर काया ही मेरे लिए अभिशाप है मेरी सुदंरता के कारण इंसानो ने मुझे कैद कर लिया है और अब में इस पिंजरे में बंद होकर उनका मनोरंजन करता हूँ । मैं अपनी मर्ज़ी से कहीं भी नहीं जा सकता जब इंसानो का दिल करता है तो मुझे नाचना पड़ता है ऐसे शरीर का क्या फायदा मुझ से सौभाग्यशाली तो तुम हो जो हर जगह मुक्त होकर घूम सकते हो मोर की बात सुनकर कौआ समझ जाता हैं कि उसे जो भी ईश्वर ने दिया है वह पार्याप्त हैं। 

देखा जाए तो इस कौआ की तरह हम भी अपनी  तुलना किसी और से कर कर दुखी होते रहते है हम अपनी प्रतिभा को न पहचान कर दुसरो के गुणों को देखकर ईर्ष्यित होते हैं। माँ बाप अपने बच्चों की तुलना किसी दुसरे बच्चे से कर के दुखी होते हैं। इस तरह का तुलनात्मक व्यवहार हमारे आत्मविश्वास को कमजोर करता है और हमारी प्रतिभा का दायरा भी सिमित कर लेतें हैं।

हम जब अपने आप से खुश नहीं रहते तब हमारे आसपास के लोग और महौल भी निराशाजनक ही होता हैं। अपनी प्रतिभा की पहचान कर हम सिमित संसाधन में भी उनन्ति कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं। ईश्वरप्रदित प्रतिभा और गुणों के प्रति कर्तज्ञ रहें। अपने अच्छी बातों को जाने और बिना किसी ईर्ष्या और द्वेष के अपने जीवन को संपूर्ण आनंद से जीएं ।

जितेन्द्र पटैल। 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

आर्य सत्य

नव संचित नव निर्मित भारत

चंदा मामा पास के