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आध्यात्मिक उद्यमिता

भारतीय दर्शन हमेशा से प्रबंधन और आध्यात्मिकता को जोड़ते आया हैं।  भारतीय संस्कृति के अनुसार उद्यमिता और आध्यात्मिकता में भी एक गहरा संबंध है। उद्यमिता  हमारे आंतरिक मूल्यों जैसे की आध्यात्मिकता और संस्कृ ति से ही संचालित होती हैं। उद्यमिता में समाजिक समस्या और उसके समाधान की बात होती हैं। एक अच्छा उद्यमी समस्या का व्यापारिक समाधान ढुंढ कर नए उद्ययम की शुरुआत करता है और उस से धन कमाता हैं। धन का संचय और लाभ कमाना  आध्यात्मिक विचार में भी सही मना गया हैं।  वहीं आध्यात्मिकता हमें अंतरिक संतुलन ,समाजिक उत्थान एवं व्यक्तिगत विकास की बात करतीं है। जब हम आध्यात्मिकता और  उद्यमिता  को मिलाते हैं तो हम पाते हैं कि एक  आध्यात्मिक  उद्यमी  अपने परितंत्र(ecosystem) में सकारात्मक सुधार लाता है। वह स्वयं संतुलित रहकर अपने परितंत्र के महत्वपूर्ण तत्वों को भी संतुलित करता है। वह समाजिक कल्याण और समाज के हर तबके को जीवन यापन के सही अवसर प्रदान करता हैं। आध्यात्मिकता जन कल्याण की बात करतीं हैं और  उद्यमिता  लाभार्जन की जब दोनों मिलतें ह...

खाना खजाना

फ्रांसिसी में कहा जाता हैं कि " La bonne cuisine est le du vrai bonheur"अच्छा खाना असली खुशी की बुनियाद हैं।  आज लॉक डाउन  (lockdown) के समय में बहुत से लोग अपने शौक को पूरा कर रहे हैं।   इनमें से एक शौक जिसमें लोग अपना हुनर आजमा रहे है वह है खाना बनाना या पाक कला। युट्यूब (YouTube) पर काफी लोग तरह तरह के पकवान बनाने का तरीका देख रहें या तो खुद भी  खाना बनाने के विडिओ डाल रहे है । खाना बनाना  न सिर्फ रचनात्मक है बल्कि एक आनंद दायक काम भी हैं।  स्वादिष्ट भोजन न सिर्फ  जबान को भाता है बल्कि शरीर और मन को भी संतुष्ट और खुश करता हैं।  जब हम भारतीय खाने की बात करते हैं तो हमें बहुत ही विविधताएं देखने को मिलती हैं। यह अंतर जलवायु फसलों और जीवन शैली के कारण भी है। पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय खाना  विविधता में एकता का नायाब उदाहरण है। हम भले चाहे भाषा, क्षेत्र और  वतावरण से भिन्न है पर हमारा खाना हमें एक गहरे जोड़े हुए है।  पर आपको जानकर आश्चर्य होगा आज जो खाना हमारी संस्कृति और दिनचर्या में रच बस गया हैं उसमें से कई ...

सामूहिक जिम्मेदारी

एक बार भगवान बुद्ध किसी गाँव में जाते हैं तो वहां लोग उन्हें एक सुखा कुआं दिखा कर उसमें पानी लाने की प्राथर्ना करते हैं। भगवान कहते है कि इस कुऐं में पानी तो आ जाएगा परतुं इसके लिए आप सभी को रात में इसके अंदर एक एक  पात्र दुध ढालना होगा।  जैसा की महात्मा बुद्ध ने कहा गाँव वाले एक-एक करके पात्र लेकर कुएँ पर गए पर सभी ने सोचा की अगर वह दुध की जगह पानी डाल देगा तो इतने दुध के साथ किसी को क्या पता चलेगा। अगली सुबह कुआं पानी से लबालब भरा था। इस कहानी से यह बात पता चलती हैं की गाँव के सभी लोग अपनी सामुहिक जिम्मेदारी निभाने में चूक गए। वर्तमान परिदृश्य में जब सारा विश्व और भारत कोरोना जैसी महामारी से जुझ रहा है  तब यह  घटना हमें हमारी सामूहिक जिम्मेदारी का अहसास दिलाती है सत्तर दिनों के लॉक डाउन (lockdown)  के बाद जब सरकार धीरे धीरे अपनी व्यवस्था खोल रहीं है तब सरकार ने हमें भगवान बुद्ध की तरह निर्देशित और सचेत कर दिया है। अब सोशल डिस्टसिंग (social Distancing), मास्क पहनना , भीड़ में न जाने और सफाई का ध्यान रखना हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है। अगर हम कहानी में बताए गए लोगो...

कर्म और भाव

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हिन्दू धर्म ग्रंथो से हमें बहुत सी प्रेरणादायक  शिक्षाएं  प्राप्त होती हैl अगर हम इन ग्रंथो में निहित ज्ञान का सचंयन अपने जीवन में आत्मसात करते है तो हम जीवन में आने वाली बहुत सारी कठिनाइयों का सामना कर सकते हैI हिंदू धर्म के  दो प्रभावी ग्रथों में महाभारत  और रामायण का अपना महत्व है और दोनों ही ग्रंथो में कर्म और उसमें छुपी भावना को बड़ा महत्व दिया गया हैI मेरा यह लेख महाभारत और  रामायण  के ऐसे ही दो प्रसंगो से मिलने वाली शिक्षा को समझने का एक प्रयास मात्र है । पहला प्रसंग महाभारत में अर्जुन द्वारा लड़ने से इंकार करने पर आता है अर्जुन युद्ध से इसलिए पीछे हटते है क्योंकि उन्हें लगता है की वह अपने ही सगे रिश्तेदारों को नहीं मार सकते है उन्हें उस समय भावुकता और संशय घेर लेते है l तब कृष्णा उसे समझाते है की यह  युद्ध धर्म की संस्थापना के लिए लड़ा जा रहा है ,नियति ने पहले ही इनकी मृत्यु निश्चित कर दी है और तुम सिर्फ इस कर्म के कारक मात्र हो अगर तुम यह सोचते हो की तुम्हारे पीछे हट जाने से इनकी मृत्यु को टाला जा सकता है तो तुम गलत हो तुम्हारा कर्म केवल युद्ध लड़...

पतंग और डोर

शिव खेड़ा जी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "जीत आपकी" की शुरुआत पिता पुत्र की कहानी से करतें है जिसमें पुत्र द्वारा कहने पर पिता आसमान में उंची ऊड़ रही पतंग की डोर काट देते हैं जिससे पतंग नीचे गिर जाती हैं। पुत्र को ऐसा लगता है कि डोर पतंग को आसमां में और ऊपर उड़ने नहीं दे रहीं हैं। हमारे जीवन में भी अनुशासन, बड़ों द्वारा दिए गए निर्देश, हमारे मुल्य एवं सिद्धांत उसी डोर का काम करतें हैं।  कई बार हमें लगता हैं कि यह सारी चीजें हमें अपने काम में रुक रहीं हैं और अगर यह ना हो तो हम काफी आगे जा सकते हैं। परंतु जब हम दीर्घकालिक नतीजों को देखते हैं तब हम पाते हैं कि अनुशासन की इसी डोर से हम सफलता अर्जित कर पाएं। हमारे मूल्य एवं सिध्दांतो ने हमें नैतिक और पथभ्रष्ट होने से बचाया हैं। जब भी दूरगामी नतीजों की बात होती हैं तब हमें पाते हैं अनुशासन ने ही सफल बनाया जल्दी मिली सफलता ज्यादा लंबी नहीं चलती हैं। अनुशासित और सिध्दांतिक  जीवन ही सफलता की कुंजी है।  जितेन्द्र पटैल। 

आंतरिक चेतना

भारतीय वैदिक पंरपरा में मनुष्य को शुद्ध चतेना माना गया हैं। और हमारा परम उद्देश्य उसी चेतना को समझना और जग्रित करना हैं। बाहरी सफलता हमेशा आंंतरिक उत्कृष्टता के बाद ही आएगीं। जब हम आंंतरिक रूप से संतुलित हो जाते हैं तब हम हमारे बाहरी जीवन को भी संतुलित कर लेते हैं।  यह बात सही है कि हम हमारे साथ होने वाली कई घटनाओं को रोक नहीं सकते है पर हम उनपर अपनी प्रतिक्रिया को जरूर रोक सकते हैं। यही एक बड़ा अंतर है जीवन में कुछ करने और उसे होने देने में।  हमारे पास अपने जीवन को महान बनाने के कई रास्ते हैं।   हम अपनी आंंतरिक चेतना को समझ कर जीवन को शांति से जी सकते है और हर परिस्थिति पर सही प्रतिक्रिया दे कर जीवन को महान बना सकते हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा बाहरी जीवन कभी भी अंतरिक चेतना से बडा़ और महान नहीं हो सकता।  यह लेख श्री  रॉबिन शर्मा द्वारा लिखी गई पुस्तक डेली इंस्पिरेशन ( Daily Inspiration) के एक अंश से प्रेरित हैं। जितेन्द्र पटैल।

समस्या

एक बार एक व्यक्ति की ऊटों के अस्तबल में ऊटों की देखभाल की नौकरी लगती हैं। उसका मालिक उसे निर्देश देता हैं कि रात को जब तक सारे ऊंट न बैठ जाए तब तक उसे आराम नहीं करना हैं। अपने मालिक की बात ध्यान में रखते हुए वह जब अस्तबल में पहुंचता है तो ऊटों को बैठाने का प्रयास करता है कुछ ऊंट जल्द ही बैठ जाते है। कुछ ऊंट खड़े रहते हैं वह एक तरफ के ऊंट बिठाता है तो दुसरी तरफ के ऊंट खड़े हो जातें है। काफी कोशिश के बाद भी कुछ ऊंट नहीं बैठते है। परेशान होकर वह व्यक्ति एक कोने में बैठ कर ऊंटो को देखने लगता है। वह यह पाता है कि कुछ समय बाद ऊंट स्वतः ही बैठ गए है। उसके बाद वह भी आराम करनें चला जाता है।  अगर हम गौर करें तो हमारे जीवन में समस्याएं भी इसी तरह की होती हैं कुछ समस्याओं को हम तुरंत हल कर सकते है। कुछ समस्याएं थोड़ी मेहनत और प्रयासों से हल होती है और कुछ कितनी भी कोशिश के बाद भी हल नहीं होती हैंं। पर आगे चलकर स्वयं ही हल हो जाती हैं। हमें अपनी परेशानियों को लेकर गंभीर और सजग रहना चाहिए ना की चंतित। जिन समास्याओं का हल अपने हाथ में है उन्हें तभी हल कर लेना चाहिए और बढा़ना नहीं चाहिए और जो सम...