कर्म और भाव
हिन्दू धर्म ग्रंथो से हमें बहुत सी प्रेरणादायक शिक्षाएं प्राप्त होती हैl अगर हम इन ग्रंथो में निहित ज्ञान का सचंयन अपने जीवन में आत्मसात करते है तो हम जीवन में आने वाली बहुत सारी कठिनाइयों का सामना कर सकते हैI हिंदू धर्म के दो प्रभावी ग्रथों में महाभारत और रामायण का अपना महत्व है और दोनों ही ग्रंथो में कर्म और उसमें छुपी भावना को बड़ा महत्व दिया गया हैI मेरा यह लेख महाभारत और रामायण के ऐसे ही दो प्रसंगो से मिलने वाली शिक्षा को समझने का एक प्रयास मात्र है ।
पहला प्रसंग महाभारत में अर्जुन द्वारा लड़ने से इंकार करने पर आता है अर्जुन युद्ध से इसलिए पीछे हटते है क्योंकि उन्हें लगता है की वह अपने ही सगे रिश्तेदारों को नहीं मार सकते है उन्हें उस समय भावुकता और संशय घेर लेते है l तब कृष्णा उसे समझाते है की यह युद्ध धर्म की संस्थापना के लिए लड़ा जा रहा है ,नियति ने पहले ही इनकी मृत्यु निश्चित कर दी है और तुम सिर्फ इस कर्म के कारक मात्र हो अगर तुम यह सोचते हो की तुम्हारे पीछे हट जाने से इनकी मृत्यु को टाला जा सकता है तो तुम गलत हो तुम्हारा कर्म केवल युद्ध लड़ना है । आधुनिक जीवन में भी हम अपने आप को ऐसी कई स्थितियों में पाते है यहाँ हम भी भावुकता और संशय के चलते कर्म नहीं करते तब हमें सोचना चाहिए की हम सिर्फ कर्म के कारक है उससे जुड़े फल और नियति द्वारा निर्धारित परिणाम पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। इसलिए कर्म करते हुए हमें किसी भी प्रकार के पूर्वानुमान ,संशय और भावुकता से दूर रहना चाहिए क्योंकि अगर कुछ चीज़ निश्चित है तो अपने ना चाहते हुए भी वो होकर रहेगी ।
दूसरा प्रसंग रामायण में श्री राम द्वारा शबरी के झूठे बेर खाने के संदर्भ में है जहां राम ने शबरी जो की एक जंगल में निवास करने वाली नीची जाति की महिला है । राम उसके के द्वारा दिए गए झूठे बेर को सहर्ष खा लेते है अपितु लक्ष्मण उन्हें नहीं खा पाते है और गुस्सा भी होते है। यहाँ कर्म से ज्यादा भाव को महत्व दिया गया है , जहां लक्ष्मण उस कर्म को अच्छा नहीं मान पा रहे है वही श्री राम उस कर्म के पीछे छुपी भावना को महत्व देते हुए उसे स्वीकार करते है हमें भी कई बार भाव को ज्यादा महत्व देना चाहिए विशेषकर जब हम एक बड़े पद पर आसीन हो और अपने अधीनस्थों से बर्ताव कर रहे हो भाव को देखने पर हम उनसे उचित बर्ताव और निष्पक्ष निर्णय लेने में सक्षम हो सकते है I
आज जब सारा विश्व कोरोना की महामारी से लड़ रहा है। तब कुछ लोग जो घर में रहकर या घर से काम करके बीमारी को रोक कर अपना कर्म कर रहें हैं। और कुछ लोग (कोरोना योध्दा) सेवा भाव के साथ घर से बाहर रहकर सच्ची भावना के साथ लोगों की मदद कर रहें हैं। दोनों के प्रयास सराहनीय है और इन्हीं के उचित सामंजस्य से ऊपर विस्तृत कर्म और भाव का मर्म हैं। हमें इनका सहयोग और उत्साह वर्धन कर इनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनीं चाहिए।
यह लेख लेखक के व्यक्तिगत विचार है।
जितेन्द्र पटेल
अच्छा है 👍👍
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏
DeleteThat's good 😊 I liked it ❤️
ReplyDelete🙏🙏🙏
Deleteउत्तम
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबढ़िया
ReplyDelete🙏🙏🙏
DeleteVery nice
ReplyDelete🙏🙏🙏
Deletenice post. would love to read more n more
ReplyDelete🙏🙏🙏
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