आंतरिक चेतना
भारतीय वैदिक पंरपरा में मनुष्य को शुद्ध चतेना माना गया हैं। और हमारा परम उद्देश्य उसी चेतना को समझना और जग्रित करना हैं। बाहरी सफलता हमेशा आंंतरिक उत्कृष्टता के बाद ही आएगीं। जब हम आंंतरिक रूप से संतुलित हो जाते हैं तब हम हमारे बाहरी जीवन को भी संतुलित कर लेते हैं।
यह बात सही है कि हम हमारे साथ होने वाली कई घटनाओं को रोक नहीं सकते है पर हम उनपर अपनी प्रतिक्रिया को जरूर रोक सकते हैं। यही एक बड़ा अंतर है जीवन में कुछ करने और उसे होने देने में। हमारे पास अपने जीवन को महान बनाने के कई रास्ते हैं।
हम अपनी आंंतरिक चेतना को समझ कर जीवन को शांति से जी सकते है और हर परिस्थिति पर सही प्रतिक्रिया दे कर जीवन को महान बना सकते हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा बाहरी जीवन कभी भी अंतरिक चेतना से बडा़ और महान नहीं हो सकता।
यह लेख श्री रॉबिन शर्मा द्वारा लिखी गई पुस्तक डेली इंस्पिरेशन ( Daily Inspiration) के एक अंश से प्रेरित हैं।जितेन्द्र पटैल।
I wish to ask what are the ways suggested by him
ReplyDeleteBy whom
Delete👏👏
ReplyDelete🙏🙏🙏
DeleteSundr 👌
DeleteBahut bahut Dhaywad
Delete🙏🙏🙏
👏👏👍 sir
ReplyDelete🙏🙏🙏
DeleteVery important information thanks for sharing 🙏🙏🙏
ReplyDeleteThanks for the appreciation 🙏🙏🙏
DeleteGood one bro
ReplyDeleteThanks Bro 👍
DeleteNice post. Good words from Robin Sharma.
ReplyDeleteThanks a lot for appreciation 🙏🙏🙏
DeleteUseful Post
ReplyDeleteNice info
ReplyDeleteThanks
DeleteNice post
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