सामूहिक जिम्मेदारी

एक बार भगवान बुद्ध किसी गाँव में जाते हैं तो वहां लोग उन्हें एक सुखा कुआं दिखा कर उसमें पानी लाने की प्राथर्ना करते हैं। भगवान कहते है कि इस कुऐं में पानी तो आ जाएगा परतुं इसके लिए आप सभी को रात में इसके अंदर एक एक  पात्र दुध ढालना होगा। 

जैसा की महात्मा बुद्ध ने कहा गाँव वाले एक-एक करके पात्र लेकर कुएँ पर गए पर सभी ने सोचा की अगर वह दुध की जगह पानी डाल देगा तो इतने दुध के साथ किसी को क्या पता चलेगा। अगली सुबह कुआं पानी से लबालब भरा था। इस कहानी से यह बात पता चलती हैं की गाँव के सभी लोग अपनी सामुहिक जिम्मेदारी निभाने में चूक गए।

वर्तमान परिदृश्य में जब सारा विश्व और भारत कोरोना जैसी महामारी से जुझ रहा है  तब यह  घटना हमें हमारी सामूहिक जिम्मेदारी का अहसास दिलाती है सत्तर दिनों के लॉक डाउन (lockdown)  के बाद जब सरकार धीरे धीरे अपनी व्यवस्था खोल रहीं है तब सरकार ने हमें भगवान बुद्ध की तरह निर्देशित और सचेत कर दिया है। अब सोशल डिस्टसिंग (social Distancing), मास्क पहनना , भीड़ में न जाने और सफाई का ध्यान रखना हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है। अगर हम कहानी में बताए गए लोगों की तरह अपनी सामूहिक जिम्मेदारी से चूक जाते हैं तो हम अपने परिवार और समाज के लिए बडा़ जोखिम उठा रहें हैं। थोड़ी सी सर्तकता, जागरूकता और हमारी व्यक्तिगत जिम्मेदारी का अहसास हमें भारी संकट से बचा सकता हैं।

यह लेखक के व्यक्तिगत विचार है। 
जितेन्द्र पटैल। 


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