हुनर और ईमानदारी

 

एक बार एक नगर में टेक्स इंस्पेक्टर शहर के सेठ के यहाँ तलाशी लेने पहुँचता है  उसे देख सेठ घबराकर फौरन उसे रिश्वत देने लगते है। पर‌ वह इंस्पेक्टर सेठजी की सारी दौलत और बहिखातों की तफ़तीश करता है। आखिर में जाते हुए जब सेठजी उसे समझौता करने को कहते है तब वह कहता है‌ कि वह एक बहरुपिया है और उसे उसके हुनर का इनाम चाहिए। उसे बहरुपिया जानकर सेठजी उस पर बहुत गुस्सा होते हैं। पर उसके हुनर का सम्मान  कर उसे इनाम भी देतें हैं।

कुछ सालो बाद उसी शहर में एक बहुत ही पहुँचे हुए साधु पधारते है। उनका यश‌ जान कर सेठजी भी उनकी शरण में जाते हैं साधु उन्हें अपना सारा धन‌ लाने को कहता है‌। सेठजी साधु के चरणों में अपनी सारी धन‌ दौलत और जवाहरात रख देते हैं अगले दिन जब साधु शहर से जाने ‌लगते ‌हैं तब वह सेठजी से कहता उसे कोई धन‌ नहीं  ‌चाहिए‌ उसे तो अपना इनाम चाहिए और‌ वह वहीं बहरुपिया है। उसके हुनर और ईमानदारी देखकर सेठजी बहुत प्रभावित होते हैं वह‌‌‌ कहते है कि तुम चाहते तो‌ मेरा सारा धन‌ ले सकते थे पर तुमने अपने इनाम के ‌पैसे माँगे तुम्हारी ईमानदारी ने तुम्हें लालच नहीं करने दिया।

देखा जाए तो यह कहानी हमें अपने कौशल और काम के प्रति ईमानदारी बरतने की शिक्षा देतीं हैं। कहानी के नायक बहरूपिया  के ‌पास सेठजी का पैसा ले जाने का पूरा मौका था पर वह ऐसा नहीं करता।हममें से कई लोग अल्पगामी फायदा के लिए दीर्धकलिक सफलता को ‌नजरंदाज कर देते है।हमें हमारे परिश्रम का फल अपने हुनर‌ के प्रति ईमानदार रहकर ही मिलेगा। हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए  की आगे चलकर हमारी पहचान हमारे कौशल और ईमानदारी से ही होगी और हम अगर अपना काम पूरी ईमानदारी से नहीं करते तो हम न‌ सिर्फ अपने लिए परंतु हमारे व्यवसाय से जुड़े दुसरे लोगों के लिए भी नकारात्मक सोच को बढ़ावा देते है।

आज जब अपना देश भारत कोरोना महामारी के चलते अपने सबसे कठिन दोर से गुजर रहा हैं और मौत ने तांडव मचा रखा हैं। ऐसे में ऑक्सीजन  और जीवन दायिनी  दवाओं की कालाबाज़ारी, भोगवादिता और‌ बेईमानी की खबर मन को व्यतीत करती है। आज जब हमें मानवता को सर्वोपरि रखकर अपने कर्तव्य को पूरी ईमानदारी से निभाना है और अपने हुनर  किसी को जीवन प्रदान करने में उपयोग करना चाहिए। तब यह कहानी हमें ईमानदारी का महत्व समझाती है साथ में हमें इस बात की शिक्षा भी देती  है कि हमारे द्वारा की गई बेईमानी हमारे व्यवसाय से जुड़े ईमानदार लोगों के प्रति भी संदेह पैदा करतें हैं और  हम इस तरह व्यवसाय को हमेशा के लिए बेईमानी का तमगा पहना देते हैं।

यह लेख दैनिक भास्कर के ‌साथ आने वाली पूरक पत्रिका मधुरिमा में प्रकाशित कहानी “सच्चा इंसान” से‌ प्रेरित है।

जितेन्द्र पटैल।

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