नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को हिंदी के महान कवि मैथिलीशरण गुप्त की यह कविता निराशा के महौल में आशान्वित करती है। महान लेखक ओ हेनरी की कहानी द लास्ट लिफ भी आशा और उम्मीद के सहारे सकारात्मक बने रहने की प्रेरणा देती है कहानी की नयिका किस प्रकार एक पेड़ की आखिरी पत्ती के सहारे जी उठती है और एक बूढा़ कलाकार किस तरह खिड़की पर पत्ती बना कर लड़की को जीवन दान देता है। इन दोनों प्रसंगों से यह समझा जा सकता है कि निराशा के समय आशा और सकारात्मकता ही संभल है।
आज जब सारा विश्व और विशेष रूप से भारत कोरोना महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है और हर तरफ निराशाजनक वातावरण बना। हुआ है हम में से कई लोगों ने अपनों को खोया, कई लोगों की नौकरी चली गई कुछ लोग आर्थिक रुप से कमजोर हो गए साथ ही कोरोना ने लोगों को मानसिक दबाव का शिकार बनाया। जिनका नुकसान हुआ है उसकी पूर्ति करना संभव नहीं है और हम सभी की सहानुभूति उनके साथ है। परंतु इस कठिन समय से सकारात्मकता और आशा के साथ ही जीता जा सकता है।
हमेशा याद रखिये की एक बड़ी जीत के पहले ही हमें हार का सामना करना पड़ता है हमें बस निराश नहीं होना है और मैदान छोड़कर नहीं भागना है। आपके जीवन में आने वाली तकलीफे आपकी प्रतिक्रिया की मोहताज है अगर हम हर परिस्थिति में सकारात्मकता खोजते है तो हम सफल और खुश रह सकते हैं।
संघर्ष से शक्ति आती है दुख एक अद्भुत शिक्षक है जीवन को गलतियों। से नहीं सबक से नापे कटु अनुभव उन्नति की राह पर अग्रसर करतें हैं। जिस प्रकार सायकिल से गिरे बिना हम उसे ठीक से नहीं चला सकते ठीक वैसे ही निराशा के बन जीवन के महत्त्व को नहीं समझा जा सकता है। निराशा हमें अधिक विनम्र, सच्चा, साहसी और धर्यवान बनाती हैं।
रात के सबसे अंधियारे पहर के बाद ही सवेरा होता हैं। उसी तरह दुख के पतझण के बाद ही खुशियों का बसंत आएगा। आशा का दामन थामे रखिये यह वक्त भी गुजर जाएगा ।
जितेन्द्र पटैल।
Great!!
ReplyDeleteThanks Harshita
DeleteVery well written sir
ReplyDeleteThanks for your kind words of appreciation
DeleteCommendable sir
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DeleteThanks for your kind words of appreciation Kunj Sir.