बुद्ध और विपश्यना

 

भगवान बुद्ध का व्यवहारिक ज्ञान आज के युग की सबसे बड़ी पूंजी है। बौद्ध धर्म आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है और इसकी शुरुआत श्रमण परम्परा से  हुई थी। यह भगवान बुद्ध द्वारा दिया गया ज्ञान धर्म और दर्शन है। बौद्ध धर्म व्यवहारिक ज्ञान पर जोर देता है और वर्तमान परिपेक्ष में बड़ी सहजता से समाहित हो जाता हैं। वैसे तो भगवान बुद्ध ने विश्व को कई ज्ञानप्रद शिक्षाएं दी हैं । परंतु मौन और विपश्यना उन सबसे महत्वपूर्ण हैं।

बुद्ध के अनुसार शांति में आत्मा निवास करती है। मौन बहुत ही शक्तिशाली होता है यह हमें सुनने और सुनाने के सक्षम बनाता है। प्रतिदिन कुछ समय मौन रहकर और प्रयासों से मौन को बड़ा कर हम अपने जीवन को सम्मानित कर सकते है। मौन आपको कई मुश्किलों से बचा सकता है।  बिना  अर्थो के शब्दों से मौन बहुत बेहतर है। मौन हमें आत्ममंथन का अवसर देता है। भगवान बुद्ध के द्वारा बताई गई विपश्यना ध्यान पद्धति में भी मौन रहकर ही ध्यान की शुरुआत करनी पड़ती है।

विपश्यना ध्यान की एक व्यवहारिक पद्धति है जिससे भगवान बुद्ध को ज्ञानोद्दीप्ति प्राप्त हुई थी। विपश्यना ध्यान में मन में आ रहे विचारों को रुकने के बाजाए उनके साथ सहजता से सम किया जाता हैं। बुद्ध के अनुसार विचार उत्पन्न करना मन की स्वाभाविक क्रिया है और इन विचारों पर प्रक्रिया न देकर हम इन्हें कमजोर कर सकते हैं और इसलिए मौन विपश्यना की पहली सीढ़ी है जिससे हम नए विचारों को रोक सकते हैं।दस बीस दिन तक चलने वाले विपश्यना शिविर में आप इशारों से भी संवाद नहीं कर सकते है और यह आपके मन को स्थिर रखने का सर्वोत्तम उपाय है।विपश्यना की अगली प्रक्रिया अनापन है और इससे श्वास पर ध्यान लगा कर मन को स्थिर किया जाता हैं और फिर ध्यान अवस्था में शरीर के हर भाग में स्पंदन महसूस किया जाता हैं। यहाँ अच्छी बात यह है कि इन स्पंदनो को रोकने की कोई चेष्ठा नहीं की जाती है बुद्ध का मानना है अपना शरीर इन्हीं स्पंदनो से बना है जब हम और गहरी साधना में जाते हैं तब हमारी चेतना इन स्पंदनो के साथ समन्वय बनाकर हमारे मन को एक स्थिर अवस्था में लाती है। इस तरह हमें परम ज्ञान और आनंद की अनुभूति होती हैं।


ध्यान की अन्य पद्धतियों से भिन्न विपश्यना में मन को सहजता से नियंत्रित किया जाता हैं न की मन में उठ रहे विचारों को हठपूर्वक तरीकों से रोक या दबाकर। यही सुगमता और सहजता विपश्यना को लोकप्रिय  बनाता है। साधक इसे बाद में भी निरंतर कर सकते हैं।

विपश्यना के बाद जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आते जैसे नकारात्मकता का प्रभाव कम हो जाता हैं,  हर विचार को उचित समय देना और अनावश्यक विचारों को जल्दी से मन से निकाल देना। सहज और आनंदित जीवन, एकाग्रता में वृद्धि एवं कार्य कुशलता और उत्पादकता में वृद्धि आदि। विपश्यना में हमारी दिनचर्या निर्धारित रहती है इस कारण यह हमारे जीवन को अनुशासित बनता है  विपश्यना हमें जीवन के हर पड़ाव में  समता से रहना सिखाता है। विपश्यना से हमें यह ज्ञात होता है कि अहसास भावनाऔर संवेदना अस्थायी भाव है और हर अहसास और भावना को साक्षी भाव से देखना चाहिए। विपश्यना हमारी प्रक्रिया में सहज भाव लता है। विशेषरूप  हमारे  नकारकत्मक भाव जैसे क्रोध और ईर्ष्या पर प्रतिक्रिया देना  आसान बनता है।

भगवान बुद्ध का ध्यान, ज्ञान और दर्शन हमारे जीवन पथ को युहीं प्रज्वलित करता रहे इसी कामना के साथ आप सभी को बुद्धपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।

यह लेख लेखक द्वारा विपश्यना पर किए गए अध्ययन और आदरणीय मित्र सुश्री हेतल सोलंकी द्वारा विपश्यना के अनुभव पर आधारित है। लेखक उनका सादर आभार प्रकट करतें हैं।

जितेन्द्र पटैल।

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