गुरु भगवन्ता

 चलिए आज के लेख की शुरुआत एक अच्छी कहानी से करते हैं। एक बार एक व्यक्ति की कुंडली में भगवान ब्रह्मा भटकाव, अस्थिरता और गरीबी लिख कर देते हैं। भगवान उस व्यक्ति की किस्मत में सिर्फ एक भैंस देते हैं और उसे सारी उम्र उसी भैंस के सहारे जीवन बिताने का काम देखें है। वह आदमी जैसे तैसे उस भैंस के साथ अपना गुजारा करता है। तभी उसके जीवन में एक गुरु आते हैं और वह उन्हें अपनी व्यथा सुनाता है। गुरु उसे कहते हैं कि वह अपनी भैंस बेच दे। और गुरु के कहने पर वह अपनी भैंस बेच देता है। अब चुंकि उसकी किस्मत में एक जानवर लिखा था इसलिए ब्रह्मा जी उसे एक गाय दे देते हैं और वह गुरु जी के कहने पर गाय भी बेच देता है। आप उसे एक और गाय मिलती है और वह गुरु जी के कहने पर उसे भी बेच देता है। यह सिलसिला रोज का हो जाता है। और ब्रह्मा जी रोज रोज गाय देकर बहुत परेशान हो जाते हैं। वह उस व्यक्ति के गुरु के पास पहुंच कर कहते है कि यह समस्या कैसे हल होगी तब गुरु जी कहते हैं कि आपने मेरे शिष्य के जीवन में अस्थिरता और भटकाव दिया है उसे ठीक कर दिजिए और उसे एक अच्छा, कुशल, स्थिर और सम्पन्न जीवन का वरदान दिजिए तब वह आपको परेशान करना बंद कर देगा। गुरु जी की कृपा से वह व्यक्ति एक अच्छा जीवन प्राप्त करता है। यह कहानी हमें अपने जीवन में एक अच्छे गुरु के महत्व को समझाती है। 

भारतीय संस्कृति में गुरु को गोविंद से ऊपर माना गया है और गुरु को को अपना सर्वस्थ समर्पित करने की बात कहीं गई है। भारत में शुरू से ही हजारों गुरुओं ने हमें ज्ञान दिया है। गौतम बुद्ध, गुरु नानक, भगवान महावीर, चाणक्य और स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे कई गुरुओं ने हमें समय समय पर सही ज्ञान देकर मार्गदर्शन दिया। हमारे यहां तो स्वयं ईश्वर को भी गुरु भक्ति के बिना ज्ञान और चेतना प्राप्त नहीं हुई। प्रभु राम ने गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र से ज्ञान प्राप्त किया तो कृष्ण ने संदिपिनि ऋषि से शिक्षा पाई। 

आज भी भारत में जन्मे और पले-बढ़े हजारों शिक्षक हमारी संस्कृति,  सभ्यता और धरोहर को विश्व के हर कोने में पहुंचा रहे हैं। आज सारा विश्व भारत को विश्व गुरु के रूप में देख रहा है और हमारे शिक्षाविदों से मार्गदर्शन की आशा कर रहा है। भारत के हर कोने छोटे-छोटे गांवों और कस्बों में शिक्षा देने वाले कई शिक्षक अपने पढ़ाए हुए विधार्थीओं को विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने का प्रोत्साहन दे रहे हैं। 

यह लेख भारतीय शिक्षा पद्धति और हर उस शिक्षक को समर्पित है जो अपने विधार्थियों को न सिर्फ अच्छी शिक्षा दे रहे हैं अपितु उन्हें उचित मार्गदर्शन प्रदान कर उनके जीवन में सुख, स्थिरता, संपन्नता और व्यापकता ला रहे हैं। 

लेखक यह लेख अपनी मां को समर्पित करते हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन छोटे गांवो और शहरों में शिक्षा देकर हजारों बच्चों के जीवन को संवारा। 

इस लेख में प्रस्तुत कहानी छात्र गर्वित मिश्रा द्वारा संस्थान के एक कार्यक्रम के दौरान सुनाई गई थी। लेखक इस कहानी का श्रेय गर्वित को देते हुए उन्हें इस सुंदर कहानी के लिए कोटिश धन्यवाद करतें हैं।

डॉ जितेन्द्र पटैल। 




Comments

  1. गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान।
    तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान।

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    1. एकदम सही बात। गुरु अखण्ड मंडालाकार से भी बड़कर है।

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