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दिवाली: रोशनी और नई शुरुआत का त्योहार

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 दिवाली, जिसे रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है, भारत में सबसे अधिक मनाए जाने वाले और व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त त्योहारों में से एक है। यह आनंद, एकजुटता और चिंतन का समय है, जिसमें एक समृद्ध आध्यात्मिक इतिहास है जो उत्सव का आधार बनता है। लेकिन दिवाली सिर्फ एक धार्मिक उत्सव से कहीं अधिक है; यह भारत के आर्थिक परिदृश्य में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो आर्थिक समावेशन और समृद्धि के मूल्यों का उदाहरण है।  दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं है; यह मूल्यों, आध्यात्मिकता और आर्थिक समावेशन का उत्सव है। यह लोगों को एक साथ लाता है, हमारे जीवन में प्रकाश के महत्व को सुदृढ़ करता है, और एक विविध और जीवंत राष्ट्र की समृद्धि को प्रदर्शित करता है। जैसे ही रोशनी घरों और सड़कों पर जगमगाती है, वे उज्जवल भविष्य की आशा और बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक हैं। दिवाली का प्रत्येक दिन एक अनूठी आध्यात्मिक कथा लेकर आता है, जो दिव्य विजय, कृतज्ञता और एक सदाचारी जीवन की खोज की कहानियों को एक साथ जोड़ती है। जैसे ही परिवार इन दिनों को मनाने के लिए एक साथ आते हैं, वे न केवल सांस्कृतिक परंपराओं में भाग

चंदा मामा पास के

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  इसरो ने चन्द्रयान३ के सफल परिप्रेक्ष्ण के साथ भारत को चांद पर पहुंचा दिया। इस उपलब्धि के साथ ही भारत विश्व का चौथा ऐसा देश बन गया है जो चांद पर पहुंचा और विश्व का पहला देश  जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर फतह पाई। यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। भारत की यह उपलब्धि न सिर्फ वैज्ञानिक प्रगति अपितु सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति की भी परिचायक है और भारतीय संस्कृति के दोनों महत्वपूर्ण स्तंभों विज्ञान और अध्यात्म से विश्व को परिचित कराती है। भारतीय संस्कृति पुरातन काल से ही विज्ञान और आध्यात्मिकता के अंतर्संबंध पर जोर देती है। वसुधैव कुटुम्ब और ब्रह्मांड के साथ एकात्म का भाव रखने वाली हमारी परंपरा आध्यात्मिक श्रद्धा और वैज्ञानिक ज्ञान के प्रति हमारे सम्मान को दर्शाती है। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता नवाचार, दृढ़ता, कठोर परिश्रम, निरंतरता और आध्यात्मिक उत्कृष्टता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। साथ ही यह हमारे समृद्ध इतिहास से प्रेरित और विरासत में निहित आविष्कारशील सोच, मितव्ययी उधमिता, नवाचार और आधुनिकता की शक्ति से दुनिया को समग्र और सतत विकास देने की भारत की क्षमता

नव संचित नव निर्मित भारत

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आज भारत अपना सतहत्तरवा स्वतंत्रता दिवस बना रहा है। और हर भारतीय के पास खुश, आशावान और उत्साहित होने की काफी सारी वजह है। आज भारत विश्व का सबसे युवा देश है और २०३० तक भारत के पास सबसे ज्यादा श्रमजीवी जनसंख्‍या ( वर्किंग पॉपुलेशन) होगी।भारत उधमिता का नया गढ़ बन कर उभरा है। २०१४ में सिर्फ साढ़े तीन सौ नए उद्यमों (स्टार्ट अप) की संख्या बढ़ कर २०२३ में नब्बे हजार हो गई है । जिसमें सौ से अधिक यूनिकॉर्न है। यानि यह सारी कंपनियों की कुल कीमत एक बिलियन या इससे अधिक है। आज की युवा पीढ़ी व्यापार उधमिता और नवाचार को सकारात्मकता से देख रही है और सारे नए उद्यमों को सम्मान दे रहा है। भारतीय नवाचार और मितव्ययी उद्यमिता( फ्रूगल इनोवेशन) के माध्यम से वैश्विक नवाचार परिदृश्य को नया आकार दे रहे हैं। संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग और जटिल समास्याओं का व्यावहारिक समाधान खोजकर भारतीय न केवल अपनी चुनौतियों का समाधान कर रहे हैं बल्कि मानवता की भलाई में भी योगदान दे रहे हैं। आज जब दुनिया जटिल मुद्दों से जूझ रही है, तब भारतीय अपनी मितव्ययी नवाचार, रचनात्मकता और सहयोग द्वारा विश्व में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक

दुःख और संताप

 रामायण में हनुमान जी हमें श्रेष्ठ प्रबंधन और नेतृत्व के की पाठ पढ़ाते हैं और वह न केवल हमें चुनौतियां से लड़ने की अपितु हर समय शांत और स्थिर रहने की भी शिक्षा देते हैं। आज के लेख में हम रामायण के दो बहुत ही कम चर्चित पात्रों की बात करने वाले हैं और रामायण के हर प्रसंग और पात्र की तरह यह दोनों भी हमें सकारात्मक जीवन की शिक्षा प्रदान करतें हैं और इन्हें भी हनुमान जी के द्वारा ही खोजा और प्रेरित किया गया है।  हनुमान अंगद नल और नील सीता माता की खोज में दक्षिण भारत में कई और जाते हैं और वह हर जगह सीता माता को खोजते हैं पर उन्हें सीता का कुछ पता नहीं चलता आगे चलते हुए उन्हें एक बड़ी ही विचित्र वीरान और सुनसान गुफा दिखाई देती है। उस गुफा में जीवन का कोई भी अंश दिखाई नहीं देता है और वह गुफा मृत्यु की घाटी की तरह प्रतीत होती है। हनुमान जी उस गुफा में प्रवेश करने की पहल करते हैं तब वानर उन्हें समझाते हैं कि यह एक मायावी लोक है और गुफा के अंदर कोई राक्षस हो सकता है तब हनुमान उन्हें कहते हैं कि हमें कोई भी जगह बिना देखे नहीं रह सकतें हैं हो सकता है कि सीता माता इसी गुफा में हो और शायद कोई हमें इस

आर्य सत्य

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 आज के लेख में बुद्ध द्वारा प्राप्त प्रमुख की शिक्षाओं की बात करते हैं । 49 दिनों के ध्यान के बाद उन्हें ज्ञान हुआ। वह सारनाथ में पहले पांच छात्रों के पास गए।  जहां उन्होंने अपना पहला व्याख्यान दिया था । पाँचों शिष्यों ने बुद्ध के शब्दों को ध्यान से सुना। उनका यह ज्ञान चार आर्य सत्य के रूप में प्रचारित हुए। दुख, या "दुक्ख," भगवान बुद्ध द्वारा पहचाना गया पहला महान सत्य था। दुनिया में हर जगह दुख मौजूद है। दुनिया में दुख के अस्तित्व को पहचानो। यह शुरू करने के लिए एक भयानक जगह की तरह लग सकता है, लेकिन भगवान बुद्ध ने देखा कि मृत्यु के कारण दुख हो सकता है।जन्म, बुढ़ापा, बीमारियाँ, भौतिक वस्तुओं के प्रति आपका लगाव, आप जो चाहते हैं वह नहीं मिलना, या किसी ऐसे व्यक्ति को खोना जिसकी आप परवाह करते हैं। ये आपकी बेचैनी के कारण हो सकते हैं। उनका आशय यह नहीं था कि तुम सब कुछ त्याग कर वैरागी बन जाओगे। वह केवल यह बताकर आपका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे कि सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। चूंकि आप एक ही वस्तु को देख रहे हैं, वे एक ही हैं। इस प्रकार, "दुक्ख" उनका पहला म

वीणा वादिनि वर दे

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 आज के लेख की शुरुआत एक रोचक कहानी से करते हैं। एक बार एक शिकारी कुछ तोतों को अपने साथ लेकर जा रहा था।उसके पास कुछ हरे और एक रंगबिरंगा तोता था। वहां पर से एक साधु गुजर रहा था उसे तोतो को कैद में उन पर दया आ गई। उसने शिकारी से अनुरोध किया की इन पक्षियों को मुक्त कर दे। शिकारी ने विरोध करते हुए कहा कि पक्षियों को पकड़ना और उन्हें बेचना उसकी रोजी रोटी का साधन है और वह इन्हें मुक्त नहीं कर सकता है। अगर साधु चाहे तो उन्हें खरीद सकता है। साधु उससे उनकी कीमत पुछता है और सारे तोतों को खरीद पाने में असमर्थ हो वह एक रंगबिरंगा तोता खरीद लेता है।  वह उस तोते को समझता है कि तुम लोग कितनी सदियों से शिकारी के जाल में फंस रहे हो। आज में तुम्हें ऐसा मंत्र देता हूं जिसे समझ कर कोई भी तोता शिकारी के जाल में नहीं फंसेगा तुम यह मंत्र अपने सारे साथियों को सिखाना और फिर तुम हमेशा मुक्त रह सकते हो।  साधु तोते से कहता है कि इस मंत्र को मेरे पीछे बोलो " शिकारी आएगा जाल बिछाएगा दाना डालेगा हम नहीं फसेंगे " ।  तोता अच्छी तरह इस मंत्र को याद कर लेता है और फिर जंगल जाकर अपने सारे साथियों को भी यह मंत्र

अंत अस्ति प्रारंभ

 साल 2022 के अंत के साथ ही हम नव वर्ष 2023 का अभिनंदन करते हैं।‌ जैसा कि कहा गया है अंत अस्ति प्रारंभ अर्थात अंत ही प्रारंभ है कहने का तात्पर्य यह है कि जाने वाला साल हमें कई चीजें सीखा कर जाता है और  हमें नए साल की नई चुनौती का सामना करने का सक्षम बनाता है। 2020 में आई कोरोना जैसे महामारी से हम लड़कर बहार आए हैं और साल 2022 कई मायनों में सामान्य रहा।  पिछले कुछ वर्षों  में आई कठिनाइयों ने हमें मानसिक रूप से काफी दृढ़ बनाया है। हमारे स्वास्थ्य विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना सिखाया है। ग्लोबलाइजेशन और ऑनलाइन माध्यमों से दुनिया काफी सिमट गई है और हम सभी ने नए कौशल विकसित किए है और शिक्षा को नए आयाम प्रदान किए है।  भारत के लिए यह साल काफी अच्छा रहा वैश्विक मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया जब युद्ध की वजह से विश्व में खाद्यान्नौ की कमी हुई तब भारत ने उसकी आपूर्ति की । विश्व के सारे बड़े देशों के द्वारा भी आने वाले दशक को भारतीय अर्थव्यवस्था का युग बताया जा रहा है इसलिए आने वाले साल से काफी उम्मीदें हैं। उद्यमिता  के क्षेत्र में नए भारतीयों उद्यमीयो