सतनाम श्री वाहे गुरु


 

भारतीय संस्कृति सदैव ही अपनी विविधता और सर्वधर्म सदभाव के लिए जानी जाती हैं। भारतीय संस्कृति को कई धर्मो ने प्रभावित किया और भारत ने इन्हें मुक्त ह्रदय से अपनाया और उनमें छुपे दया, करूणा और आराधना के भाव को आत्मसात किया। भारत को प्रभावित करने वाले सभी धर्मो में सिख धर्म एक बहुत ही प्रमुख धर्म है। सिख धर्म के पहले गुरू श्री गुरुनानक देव जी अपने सरल व्यक्तित्व नीतिगत और व्यवहारिक शिक्षाओं के कारण हर भारतीय के लिए सम्मानित, प्रतिष्ठित और पूज्यनीय बनाता है।

यो तो गुरुनानक देव जी  का पूरा जीवन प्रेरणादायक है पर यहाँ उनके जीवन के दो प्रसंगो  की चर्चा करते हैं जिससे हमें सहजता और ईमानदारी की शिक्षा मिलती है। पहले प्रसंग में जब वह यात्रा के दौरान किसी घर में विश्राम करने रूकते है और बिस्तर पर‌ लेटते समय उनके पैर घर के आराध्य की तस्वीरो की तरफ हो जाते है तब घरमालिक के अनुरोध पर‌ वह जब पैर दूसरी तरफ करतें हैं तब वह तस्वीर भी अपनी जगह बदल कर फिर से उनके पैरों की तरफ हो जाती है। इस घटना से हमें उनकी सहजता और आराध्य के सम्मान के गुणों का पता चलता है वह खुद ईश्वर स्वरूप होकर भी सहजता से घरमालिक की बात मान लेते हैदुसरे प्रसंग में किसी नगर में एक गरीब और सेठ के यहाँ भोजन पर बुलाए जाने पर गरीब का आमंत्रण स्वीकार करते हैं और सेठ के द्वारा आपत्ति जताने पर वह दोनो ‌के घर की एक-एक रोटी को अपने हाथों से निचोड़ते है तब गरीब की रोटी में दुध और सेठ की रोटी ‌से ‌खुन‌ निकलता है फिर नानक कहते है कि गरीब‌‌ का खाना मेहनत और ईमानदारी का है इसलिए वह अच्छाऔर सुख देने वाला है वही सेठ का भोजन‌ बेईमानी और दुखी करने वाला है।

गुरुनानक देव जी ने संसारिक माया से बचने के लिए अहंकार, क्रोध, लालच, लगाव और वासना जैसी  पांच बुराइयों पर विजय प्रात्प करने की बात कही हैसाथ ही उन्होंने जीवन में सेवा और सिमरन का महत्व बताया है वह कहते है सेवा का उपकार तो  भगवान  भी मानते है नानक कहते है कि गुरु की वाणी  ज्ञान और मुक्ति का स्रोत्र है. संगत और पंगत का सिद्धांत देकर उन्होंने सामाजिक ऊँच नीच को भी खत्म किया आज भी हर गुरूद्वारे में चलने वाले लंगर बिना किसी भेद भाव के भूखे को भोजन देने का काम करते है और सेवा और समर्पण सर्वोपरि मानते है अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ नानक जी ने काफी प्रबलता से विरोध किया झूठे और पाखंडी लोगो और मानयताओं को ख़त्म किया और भगवान को निरंकार और अलख बताया एक ओमकार सतनाम का मूल मंत्र देकर भगवान को किसी भी बंधन के मुक्त और सबका भला करने वाला बताया.  

 

गुरु नानक देव जी के प्रमुख उपदेश  हुकम रजाई चलना, नानक लिखया नाल, में वह गुरु नानक देव जी की प्रमुख के उपदेश प्रमुख में वह कहते है कि हर कार्य ईश्वर कि इच्छा से ही होता है और हमे बिना किसी पूर्वाग्रह से उसे स्वीकार करना चाहिए । "नानक नाम चड़दी कला, तेरे भाणे सरवत दा भला का"  के माध्यम से वह ईश्वर के नाम की  सार्थकता को समझते हुए कहते है कि ईश्वर का नाम कल्याण ,ख़ुशी और सकारात्मकता लाता है और उसी के आशीर्वाद से सभी के जीवन में समृद्धि एवं शांति आये अपने एक और सन्देश “सच की बानी नानक आखै सच सुनाएसि सच की बेला” में नानक कहते उन्होंने ईश्वर के कहे अनुसार इस सच्ची दुनिया को सच्चे भगवान से जोड़ दिया है और हमे झूठे को छोड़ कर सच्चे ईश्वर में ही मन लगाना चाहिए

सिख धर्म गुरु नानक जी द्वारा बताये गए  तीन मूल्य सिद्धांतो  नाम जपो, किरात करो, वंद चाको अर्थात सच्चे भगवान का स्मरण करते रहना, ईमानदारी और बिना किसी धोखे के अपना जीवन जीना और अपनी कमाई से किसी जरुरतमंद की मदद करना पर ही आधारित है

मेरी यही आशा है की गुरु नानक देव जी के सन्देश और शिक्षाए हमे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए प्रेरित करे और मनुष्य का कल्याण करती रहे

आप सभी को गुरुपुरब और प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं

जितेन्द्र पटैल

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