स्कूल चले हम
पिछले साल मार्च में बंद हुए स्कूल और कॉलेज को सरकार ने धीरे धीरे एवं क्रमश खोलने के आदेश दिए हैं। इसमें अभी छोटे बच्चों के स्कूल सावधानी पूर्वक बंद रखें जाएगें। यह फैसला स्वागत योग्य हैं साथ ही शैक्षिक संस्थानों को इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा की संस्थान पूरी सावधानी के साथ सामाजिक दूरी (Social Distancing) का ध्यान रखते हुए। सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करते हुए ही खोले जाएं।
पिछले वर्ष जब सारी शिक्षा व्यवस्था ऑनलाइन प्रणाली में बदल गई तब कुछ स्कूलों और विधार्थियों ने प्रारंभिक कठिनाइयों के बाद अपने आपको इसके अनुकूल बना लिया। परंतु UNESCO के अध्ययन के अनुसार स्कूल बंद होने पर बाल मजदूरी और बाल विवाह जैसे घटनाओं में बढ़ोतरी हुई साथ ही तकनीकी माध्यमों की कमी की वजह से कई बच्चों की पढा़ई बीच में ही छुट गई।
कुल मिलाकर बच्चों और किशोरों के लिए पिछला साल मिलाजुला रहा। बीते वर्ष ने बाल मनोविज्ञान के काफी सबक सिखाए। जिन्हें मैं एक शिक्षक, करियर काउंसलर एवं पिता होने के नाते इस लेख के माध्यम से साझा करना चांहुगा।
अपने बच्चों के साथ समय बिताए। आपका बच्चा आपके साथ बिताया समय हमेशा याद रखेगा ।
सिमित समय होने पर भी उनपर ध्यान दें। बच्चों की बुरी आदतों पर डाटने की बजाए उनकी अच्छी आदतों पर उनकी तारीफ किजिए बच्चे उन बातों को हमेशा दुहराते है जिस पर उनकी तारीफ हुई है।
अगर आपका बच्चा किशोरावस्था में हे और आपकी बातें नहीं सुन रहा है तो उसे अपमान के रुप मे न देखे किशोर बच्चा अपनी कुछ समस्या अपने दोस्तों के साथ साझा करने में ज्यादा सहज होते हैं। स्कूल न खुलने पर वह यह नहीं कर पा रहे है I उन्हें समय दीजिये जब वह सहज होगें तो खुद ही अपनी समस्या के लिए समाधान और मार्गदर्शन लेंगे। किशोर बच्चों से घर के मामले में सलाह ले उन्हें पारिवारिक चर्चा में शामिल करें। ऐसा करने पर वह सम्मानित महसूस करेंगे और उनका आत्मसम्मान बढ़ेगा
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अपने बच्चों को गलतियाँ करने दे उन्हें यह पता होना चाहिए की जिस गलती से कुछ सिखाने को मिलता है वह गलती नहीं होती है। बच्चे द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करें चाहे नतीजा कुछ भी हो यह उन्हें निरंतर प्रयास के लिए प्रोत्साहित करेगा। बच्चों को अपनी समस्याओं को खुद सुलझाने दें हो सकता है कि वह उसे ऐसे सुलझाए जो हमें अचंभित कर दे। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आगे आने वाली बड़ी समस्याओं का सामना करने में मदद करेगा। उन्हें किसी अप्रिये घटना का समान करने दे यह उन्हें जीवन के बुरे अनुभव के लिए तैयार करेगा ।अपने बच्चों की तुलना किसी और से न करें यह उनमें हीन भावना पैदा करता है और उन पर अनचाहा दवाब बनाता हैं। याद रखें हर बच्चा अपने आप में अलग और अनोखा होता हैं। वह जैसा है उस पर गर्व करें।
लाकडाउन में मिले खाली समय को बहुत से बच्चों ने अपनी रुचि को बढाने में प्रयोग किया वह पढ़ने की आदत, किसी वाध्य यंत्र को सिखना या पेटिंग सीखना हो सकता है हम अगर अपने बच्चों की रूचि में साथ दें तो उसमें काफी निखार आ सकता हैं। और इस तरह हम सोशल मीडिया साधनों का भी सदुपयोग कर सकते है और उनकी कोपल कल्पनाओं को नए आयाम दे सकते है।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद मित्र
ReplyDeleteबहुत अच्छा और ज्ञानवर्धक लेख hai
ReplyDeleteबहुत बहत धन्यवाद
Deleteबहुत अच्छा और ज्ञानवर्धक लेख hai
ReplyDeleteबहुत बहत धन्यवाद
Deleteबहुत अच्छा और ज्ञानवर्धक लेख hai
ReplyDeleteबहुत बहत धन्यवाद
DeleteV good
ReplyDeleteThanks a lot Bro
DeleteVery sensitive blog addressing the child issue
ReplyDeleteThanks being a career counselor and teacher for last 10 years. I think this issue need to be address. I also write on various topic on spirituality and motivation.🙏🙏🙏
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