आहार शुद्धि विचार शुद्धि


भारतीय संस्कृति में भोजन को जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है । आज जब सारा विश्व पर्यावरण परिवर्तन (climatic change) एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण (Global Warming) की समस्या से जूझ रहा हैं और हमारा आहार इस समस्या का एक मुख्य कारण है तब भारतीय भोजन पद्धति इसका एक उचित समाधान माना जा रहा है ।

भारतीय पौराणिक वेद भोजन को ऋतु चक्र के साथ जोड़ते है और मौसम के अनुसार खाने पर जोर देते हैं । भारतीय शास्त्रों के अनुसार हमारा खाना हमारी शारीरिक मानसिक अवस्था एवं स्वभाव पर गहरा प्रभाव डालता है । चाणक्य नीति में वर्णित यह श्लोक  “दीपोभक्षयतेध्वान्तंकज्जलं च प्रसूयते | यदन्नं भक्षयेन्नित्यंजाय तेतादृशी प्रजा” जिसका अर्थ है कि जिस प्रकार दीपक अंधकार खाकर काजल उत्पन्न करता है उसी प्रकार मनुष्य जो भी खाता है उसी प्रकार  के विचार  उत्पन्न करता है । यह श्लोक भोजन का मानव जीवन में होने वाले गहरे प्रभाव को दर्शाता है । आयुर्वेद में भी भोजन को सात्विक तामसिक और राजसिक प्रकारों में बाँटा गया है ।


भारतीय स्वदेशी या देशज खाने की बात करें तो घरेलू उगाई गई फसलें ताजे फल फूल और सब्जियां साथ ही मसाले जैसे कि हल्दी कालीमिर्च, बीज और  सूखे मेवे जैसे कि काजु बदाम और‌ नारियल‌ का व्यापक उपयोग होता हैं । भारतीय खाने में लोग पेड़ पौधों के पत्ते, फल तना एवं जड़ का भी प्रयोग करतें हैं ।


भारतीय भोजन अपनी वैज्ञानिकता, विविधता, स्वाद और पर्यावरण अनुकूलता की वजह से विश्व भर में प्रसिद्ध है और संधारणीय विकास (Sustainable Development) के वर्तमान परिदृश्य में काफी प्रासंगिक हैं ।

जितेन्द्र पटैल

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