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Showing posts from June, 2020

आध्यात्मिक उद्यमिता

भारतीय दर्शन हमेशा से प्रबंधन और आध्यात्मिकता को जोड़ते आया हैं।  भारतीय संस्कृति के अनुसार उद्यमिता और आध्यात्मिकता में भी एक गहरा संबंध है। उद्यमिता  हमारे आंतरिक मूल्यों जैसे की आध्यात्मिकता और संस्कृ ति से ही संचालित होती हैं। उद्यमिता में समाजिक समस्या और उसके समाधान की बात होती हैं। एक अच्छा उद्यमी समस्या का व्यापारिक समाधान ढुंढ कर नए उद्ययम की शुरुआत करता है और उस से धन कमाता हैं। धन का संचय और लाभ कमाना  आध्यात्मिक विचार में भी सही मना गया हैं।  वहीं आध्यात्मिकता हमें अंतरिक संतुलन ,समाजिक उत्थान एवं व्यक्तिगत विकास की बात करतीं है। जब हम आध्यात्मिकता और  उद्यमिता  को मिलाते हैं तो हम पाते हैं कि एक  आध्यात्मिक  उद्यमी  अपने परितंत्र(ecosystem) में सकारात्मक सुधार लाता है। वह स्वयं संतुलित रहकर अपने परितंत्र के महत्वपूर्ण तत्वों को भी संतुलित करता है। वह समाजिक कल्याण और समाज के हर तबके को जीवन यापन के सही अवसर प्रदान करता हैं। आध्यात्मिकता जन कल्याण की बात करतीं हैं और  उद्यमिता  लाभार्जन की जब दोनों मिलतें ह...

खाना खजाना

फ्रांसिसी में कहा जाता हैं कि " La bonne cuisine est le du vrai bonheur"अच्छा खाना असली खुशी की बुनियाद हैं।  आज लॉक डाउन  (lockdown) के समय में बहुत से लोग अपने शौक को पूरा कर रहे हैं।   इनमें से एक शौक जिसमें लोग अपना हुनर आजमा रहे है वह है खाना बनाना या पाक कला। युट्यूब (YouTube) पर काफी लोग तरह तरह के पकवान बनाने का तरीका देख रहें या तो खुद भी  खाना बनाने के विडिओ डाल रहे है । खाना बनाना  न सिर्फ रचनात्मक है बल्कि एक आनंद दायक काम भी हैं।  स्वादिष्ट भोजन न सिर्फ  जबान को भाता है बल्कि शरीर और मन को भी संतुष्ट और खुश करता हैं।  जब हम भारतीय खाने की बात करते हैं तो हमें बहुत ही विविधताएं देखने को मिलती हैं। यह अंतर जलवायु फसलों और जीवन शैली के कारण भी है। पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय खाना  विविधता में एकता का नायाब उदाहरण है। हम भले चाहे भाषा, क्षेत्र और  वतावरण से भिन्न है पर हमारा खाना हमें एक गहरे जोड़े हुए है।  पर आपको जानकर आश्चर्य होगा आज जो खाना हमारी संस्कृति और दिनचर्या में रच बस गया हैं उसमें से कई ...

सामूहिक जिम्मेदारी

एक बार भगवान बुद्ध किसी गाँव में जाते हैं तो वहां लोग उन्हें एक सुखा कुआं दिखा कर उसमें पानी लाने की प्राथर्ना करते हैं। भगवान कहते है कि इस कुऐं में पानी तो आ जाएगा परतुं इसके लिए आप सभी को रात में इसके अंदर एक एक  पात्र दुध ढालना होगा।  जैसा की महात्मा बुद्ध ने कहा गाँव वाले एक-एक करके पात्र लेकर कुएँ पर गए पर सभी ने सोचा की अगर वह दुध की जगह पानी डाल देगा तो इतने दुध के साथ किसी को क्या पता चलेगा। अगली सुबह कुआं पानी से लबालब भरा था। इस कहानी से यह बात पता चलती हैं की गाँव के सभी लोग अपनी सामुहिक जिम्मेदारी निभाने में चूक गए। वर्तमान परिदृश्य में जब सारा विश्व और भारत कोरोना जैसी महामारी से जुझ रहा है  तब यह  घटना हमें हमारी सामूहिक जिम्मेदारी का अहसास दिलाती है सत्तर दिनों के लॉक डाउन (lockdown)  के बाद जब सरकार धीरे धीरे अपनी व्यवस्था खोल रहीं है तब सरकार ने हमें भगवान बुद्ध की तरह निर्देशित और सचेत कर दिया है। अब सोशल डिस्टसिंग (social Distancing), मास्क पहनना , भीड़ में न जाने और सफाई का ध्यान रखना हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है। अगर हम कहानी में बताए गए लोगो...

कर्म और भाव

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हिन्दू धर्म ग्रंथो से हमें बहुत सी प्रेरणादायक  शिक्षाएं  प्राप्त होती हैl अगर हम इन ग्रंथो में निहित ज्ञान का सचंयन अपने जीवन में आत्मसात करते है तो हम जीवन में आने वाली बहुत सारी कठिनाइयों का सामना कर सकते हैI हिंदू धर्म के  दो प्रभावी ग्रथों में महाभारत  और रामायण का अपना महत्व है और दोनों ही ग्रंथो में कर्म और उसमें छुपी भावना को बड़ा महत्व दिया गया हैI मेरा यह लेख महाभारत और  रामायण  के ऐसे ही दो प्रसंगो से मिलने वाली शिक्षा को समझने का एक प्रयास मात्र है । पहला प्रसंग महाभारत में अर्जुन द्वारा लड़ने से इंकार करने पर आता है अर्जुन युद्ध से इसलिए पीछे हटते है क्योंकि उन्हें लगता है की वह अपने ही सगे रिश्तेदारों को नहीं मार सकते है उन्हें उस समय भावुकता और संशय घेर लेते है l तब कृष्णा उसे समझाते है की यह  युद्ध धर्म की संस्थापना के लिए लड़ा जा रहा है ,नियति ने पहले ही इनकी मृत्यु निश्चित कर दी है और तुम सिर्फ इस कर्म के कारक मात्र हो अगर तुम यह सोचते हो की तुम्हारे पीछे हट जाने से इनकी मृत्यु को टाला जा सकता है तो तुम गलत हो तुम्हारा कर्म केवल युद्ध लड़...