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Showing posts from June, 2023

झूठा अभिमान

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दीवाली की रात में सेठ जी की विशाल हवेली की ऊपरी मंजिल पर घी से भरा हुआ दिया जगमगा रहा था। वहीं उसी हवेली के नौकर के झोंपड़ी की चोखट पर भी एक कम तेल का दिया तमतमा रहा था।  नौकर के घर पर रखें दिए ने हवेली वाले दिए से कहा कि क्यों भाई तुम कैसे हो हम दोनों अलग-अलग जगह पर रह कर भी अपनी बिरादरी काम कर रहे है और हम दोनों ही अपने मालिकों के घर को रोशन कर रहे हैं। दीवाली पर यहीं हमारी सार्थकता है।   उस दिए की बात सुनकर हवेली वाला दिया चिढ़कर बोलता है की तेरी मेरी कोई बराबरी नहीं है कहां मैं नगर सेठ की हवेली की शोभा बढ़ा रहा हूं और तु कहां एक गरीब की कुटिया में जल रहा है। मेरे में इतना घी भरा हुआ है कि मैं रात भर जलता रहूंगा और तु और तेरा तेल थोड़ी देर में खत्म हो जाएगा। हवेली की दिए की बात सुनकर झोंपड़ी का दिया दुखी और निराश हो जाता है और शांति से अपनी झोपड़ी रोशन करने लगता है।  अगले दिन सुबह सफाई में हवेली का दीपक में धक्का लग जाता है और वह नीचे गिर के चकनाचूर हो जाता है। वहीं झोपड़ी के दिए को ठीक तरह से उठाकर कोने में रख दिया जाता है। वह दिया अगले दिन भी झोपड़ी को रोशन करने...

हरि नाम की महिमा

आज के लेख में कुछ पौराणिक कथाओं के माध्यम से हरि नाम की महिमा का महत्व समझते हैं। हम सभी ने गजेन्द्र मोक्ष की कथा सुनी होगी और आपको यह  भी पता होगा कि किस तरह एक गज या हाथी के बुलाने पर नारायण आकर उसे मगरमच्छ के जबड़े से बचा लेते हैं।  दुसरी कथा गणिका नाम की वेश्या की है जिसने सारी उम्र वेश्यावृत्ति करी और अपने अंत समय में हरि का नाम लेकर मुक्ति पाई। तीसरी कथा अजामिल नाम के एक  पापी और धुर्त व्यक्ति की है जिसने सारी उम्र हरि नाम नहीं लिया परंतु कुछ साधुओं की बात मान कर अपने बेटे का नाम नारायण रख दिया और मरते हुए बेटे के नाम लेने पर उसे स्वयं नारायण यमदूतों से बचाने आए जाते हैं। इसी तरह मां शबरी ने भी सारी उम्र राम का नाम लिया और बुढ़ापे में उन्हें राम के दर्शन प्राप्त हुए।  रामायण में एक और प्रसंग आता है जब संत सभा में काशी नरेश सुकंत नारद मुनि द्वारा समझाने पर ऋषि विश्वामित्र को प्रणाम नहीं करते हैं इससे कोर्धित हो वह राय जी को  सुकंत को मार देने का आदेश देते हैं। राम जी भी गुरु की आज्ञा मानकर सुकंत को मारने का प्रण लेते हैं। वहां सुकंत अपनी रक्षा के लिए म...

राजा के गुण

आज के लेख में भारतीय संस्कृति के एक सबसे प्रमुख ग्रन्थ महाभारत के एक प्रसंग से करते हैं। यु तो महाभारत की कथा कई प्रेरणादायक उद्धरणों से भरी पड़ी हैं।खांडवप्रस्थ के वन जलाकर पड़ावों ने इंद्रप्रस्थ नामक नए राज्य की स्थापना की और महाराज युधिष्ठिर राजा बने आज के लेख में हम महाराज युधिष्ठिर को महर्षि नारद द्वारा बताये गए राजा के गुणों की चर्चा करते है । महर्षि नारद ने महाराज युधिष्ठिर राजा के ग्यारह गुणों के बारे में बताया नारद मुनि के अनुसार राजा का प्रथम गुण सहभागी नेतृत्व है अर्थात एक राजा अपने राज्य के निर्णय स्वयं न लेकर सभी की सलाह और सहमति से लेता है कहने का अर्थ है कि वह तानाशाह नहीं है और सभी के हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करता है।  महर्षि नारद ने राजा का दुसरा कर्त्तव्य अपने सैनिकों को समय पर वेतन देना है किसी भी देश की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण दायित्व है और इसलिए राजा को अपने सैनिकों को वतन समय पर देना चाहिए। राजा का तीसरा कर्त्तव्य है कि वह अपने लिए जोखिम उठाने वाले और कठिन और बहादुरी के काम करने वाले व्यक्तिओं को सम्मान, भोजन और वेतन समय पर देना चाहिए।राजा अप...