समुद्र मंथन से आत्ममंथन।
हिन्दू धर्म में समुद्र मंथन की कथा काफी प्रचलित हैं। इस कथा को समझा जाए तो इस से हमें प्रबंधन के बहुत सारे पाठ सीखने को मिलतें हैं।दरअसल समुद्र मंथन आत्म मंथन की ही कथा हैं समुद्र मंथन में से निकली वस्तुओं पर ध्यान दें तो पाएंगे की इसमें सबसे पहले हलाहल विष निकला था। अगर हम भी अपना आत्म मंथन करें तो हमें भी सबसे पहले हमारी बुरी आदत या बुराई ही निकल कर आती हैं। जिसे हम विष की संज्ञा दे सकते हैं। इस विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया और उसे अंदर न लेकर गले में रख लिया शिव जी यहां यहीं शिक्षा देतें हैं कि हमें अपनी बुराइयों को अंदर नहीं धारण करना चाहिए या अगर हम में कोई बुराई हैं भी तो हमारी पहचान उसके द्वारा नहीं होनी चाहिए। उसके बाद समुद्र मंथन से कई उपयोगी पंरतु भौतिक वस्तुएं निकलती हैं जिन्हें देवता और असुर आपस में बांट लेते हैं समुद्र मंथन का असली उद्देश्य अमृत की प्राप्ति था। यहां हम देखे तो मंथन से निकले बहु मुल्य रत्न और वस्तुएं आत्म मंथन के संदर्भ में भौतिक सुख जैसे कि घर, गाडी़, जैवर आदि की बात करता हैं यह सब चीजें उपयोगी हैं पर कई बार हम इन सुखों में इतना खो जाते ह...